# कविता को किताब से निकालकर जुबान तक लानेवाले कवि थे नीरज #

689
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement

आज से ठीक दो साल पहले 19 जुलाई 2018 को कवि-गीतकार गोपालदास नीरज ने हम सबसे विदा लेकर महाप्रस्थान किया था। नीरज कई पीढ़ियों के प्रिय कवि-गीतकार थे। वे मंचों से काव्य पाठ करते हुए लगातार यही संदेश देते रहे कि आधुनिक हिंदी कविता को यदि किताब के पन्ने से निकालकर जुबान तक लाना है तो उसकी आवृत्ति और प्रभावशाली आवृत्ति के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। नीरज यह मानते थे कि कविता तभी चिरस्थाई हो सकती है जब वह गेय हो। इसीलिए वे अपने संपर्क में आनेवाले नए कवियों से भी यही कहते थे कि वे छंदबद्ध कविताएं ही लिखें क्योंकि छंदबद्ध कविताएं ही जबान पर चढ़ती हैं। उन्होंने यह भी बोध कराया कि कविता वह है जो कंठस्थ हो जाए। गहरी लय और छंद की निजता ने नीरज की कविता को एक नए ताप से सिरजकर उसे संप्रेषण के स्तर पर अंतिम श्रोता तक पहुंचाने का उल्लेखनीय काम किया। नवगीत के संसार में निजता और मौलिकता के अर्जन और प्रकृति के साथ मनुष्य के आत्मीय संबंधों के सृजन के लिए नीरज जी पूरे हिंदी जगत में समादृत थे।
हिंदी कविता के पाठक नहीं होने का रोना अक्सर रोया जाता है किंतु नीरज की काव्य पुस्तकें भी खूब बिकीं। उनके काव्य संग्रह संघर्ष, अन्तर्ध्वनि, विभावरी, प्राणगीत, दर्द दिया है, बादर बरस गयो, मुक्तकी, दो गीत, नीरज की पाती, गीत भी अगीत भी, आसावरी, नदी किनारे, लहर पुकारे, कारवाँ गुजर गया, फिर दीप जलेगा, तुम्हारे लिये, नीरज की गीतिकाएँ की विक्री कभी नहीं घटी। इससे यह साफ है कि गेय कविता के पाठक हैं। हिंदी कविता कविता के पाठक नहीं है, इसे नीरज ने झूठा साबित किया। गेयता के गुण के कारण पठन-वृत्ति बढ़ती है, यह भी प्रतीति उन्हों ने कराई। इससे भी एक कदम आगे जाकर उन्होंने अपनी काव्य आवृत्ति तथा काव्य संगीत के कैसेट भी निकलवाए। वे भी बिके। कदाचित इसके पीछे उनका यह सपना था कि हिंदी में जिस तरह कबीर संगीत है, तुलसी संगीत है, उसी तरह आधुनिक काल के हिंदी कवियों का काव्य संगीत भी विकसित हो। हिंदी में तुलसी और मीरा जरूर घर-घर गाए जाते हैं किंतु आधुनिक काल के किसी कवि के नाम पर संगीत नहीं है। न निराला संगीत है न प्रसाद संगीत। जबकि बांग्ला में रवींद्र संगीत है, नजरुल संगीत है। तमिल के महाकवि सुब्रमण्यम भारती घर-घर गाए जाते हैं।
अपने कथ्य और अनूठे अंदाज के कारण नीरज अपने शुरुआती वर्षों में ही काव्य मंच पर छा गए। इतने लोकप्रिय हुए कि फिल्म जगत ने गीत लिखने का उनसे आग्रह किया और पहली ही फिल्म में लिखे उनके गीत ‘कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे’ और ‘देखती ही रहो आज दर्पण न तुम, प्यार का यह मुहूरत निकल जायेगा’ बेहद लोकप्रिय हुए। उसके बाद उनके लिखे गीत ‘लिखे जो खत तुझे’ ‘ए भाई जरा देख के चलो’ ‘दिल आज शायर है, ‘फूलों के रंग से’ और ‘मेघा छाए आधी रात’ सदाबहार हैं। सिर्फ फिल्मों में ही नहीं, देश-विदेश के काव्य मंचों से गाए उनके गीत आज भी लोग गुनगुनाते हैं- अब के सावन में ये शरारत मेरे साथ हुई, मेरा घर छोड़ के कुल शहर में बरसात हुई। मैंने सोचा कि मेरे देश की हालत क्या है, एक कातिल से तभी मेरी मुलाक़ात हुई। अपने वारे में उनका यह शेर फरमाइश के साथ सुना जाता था: इतने बदनाम हुए हम तो इस जमाने में, लगेंगी आपको सदियाँ हमें भुलाने में। न पीने का सलीका न पिलाने का शऊर, ऐसे भी लोग चले आये हैं मयखाने में।
नीरज ने देश-विदेश के काव्य मंचों को सात दशकों तक अपने गीतों से रससिक्त और आलोकित किए रखा और काव्य मंचों के लिए अपरिहार्य बने रहे। बीड़ी, शराब और कविता उनके जीवन की अभिन्न सहचरी थी। शराब पीकर झूमते हुए जब वे काव्य आवृत्ति करते थे तो श्रोताओं पर भी नशा चढ़ने लगता था। उनका काव्य पाठ श्रोताओं से रुहानी रिश्ता कायम कर लेता था। नीरज जी हिंदी गीत और नवगीत में नवजागृति के प्रतीक पुरुष थे। उनके गीतों में हम समूचे युग की धड़कन सुन पाते हैं। उन्होंने प्रेम व श्रृंगार के गीत लिखे तो आम जन की पीड़ा को अभिव्यक्त करनेवाले और जन चेतनावाले गीत भी। उनके गीतों में कोमलता के समानांतर जन-विरोधी व्यवस्था का तीब्र प्रतिरोध भी है। उनके गीतों में धारदार व्यंग्य भी है जो उन्हें रूप, सौन्दर्य एवं शृंगार के परंपरागत चौखट से निकाल कर खुरदुरे मैदान में ले आता है।  गरीबी की समस्या पर उन्होंने लिखाः लड़ना हमें गरीबी से था और हम लड़े गरीबों से। आतंकवाद पर उनकी चिंता देखें-दूध दहीवाली सड़कों पर बारुदों के ढेर मिले। जलते हुए मकान मिले और बुझते हुए चिराग मिले। धर्म के नाम पर लोगों को बांटनेवालों पर नीरज ने लिखाः झूठे संप्रदायवादों ने यूं भरमाया लोगों को, ईंटों का घर याद रहा, हम दिल का ठिकाना भूल गए। उनके लिए गीत काव्याभिव्यक्ति का चरम उत्कर्ष था। उनकी कविताओं में हम आध्यात्मिक चेतना भी पाते हैं। उपनिषद तथा गीतावाले भारतीय चिंतन को उन्होंने गजल के जरिए व्यक्त किया। इस नश्वर शरीर पर उन्होंने अद्भुत गजल लिखी है। हम सभी जानते हैं कि शरीर एक दिन चला जाएगा फिर भी उसे बनाते-संवारते हैं। नीरज ने लिखा थाः मेरे नसीब में ऐसा भी वक्त आना था, जो लगा गिरनेवाला था, वो घर मुझे बनाना था। एक अन्य रचना में उन्होंने लिखा थाः तमाम उम्र मैं एक अजनबी के घर में रहा। सफर न करते हुए भी सफर में रहा। एक दूसरी कविता में उन्होंने लिखा था- अभी न जाओ प्राण, प्राण में प्यास शेष है। प्यास शेष होने की जिजीविषा उनकी कविता में है तो सूफियाना अंदाज भीः दिल के काबे में नमाज पढ़। यहां-वहां भरमाना छोड़। सांस सांस तेरी अजान है, सुबह शाम चिल्लाना छोड़। नीरज की कविता हमेशा समाज से अंधकार को हटाने का स्वप्न देखती थी। उन्होंने लिखा हैः जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए। उन्हें इस बात के लिए सदैव याद रखा जाएगा कि उन्होंने हिंदी कविता को समाज के बीच फैलाया जो पुस्तकालयों और विद्या संस्थानों में बंद थी। हिंदी कविता को उन्होंने कवि सम्मेलनों के जरिए विदेशों में भी पहुंचाया।

लेखक कृपाशंकर चौबे महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के प्रोफेसर हैं व जनसत्ता, हिन्दुस्तान सहित कई अखबारों के उप संपादक रह चुके हैं
Advertisement
Advertisement
Advertisement

For Sending News, Photos & Any Queries Contact Us by Mobile or Whatsapp - 9434243363 //  Email us - raghusahu0gmail.com