सुप्रीम कोर्ट का आदेश: SIR में नाम कटने वालों को मिलेगी Aadhaar के साथ पुनः आवेदन का अवसर






बिहार के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) अभियान के तहत मतदाता सूची से लगभग 65 लाख नाम हटाए जाने के विवाद के बीच सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण मध्यवर्ती आदेश जारी किया है। अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि जिन लोगों का नाम मतदाता सूची से हटा दिया गया है, वे अब Aadhaar कार्ड के साथ पुनः आवेदन कर सकते हैं और इस निर्णय को चुनौती दे सकते हैं।




मुख्य निर्देश:

सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ—न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति जॉयमल्या बागची—ने निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) को 65 लाख हटा दिए गए मतदाताओं की सूची प्रकाशित करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही हटाए जाने का कारण भी सार्वजनिक माध्यमों से साझा करने को कहा गया है।
इन सूचियों को जिला-स्तर की वेबसाइटों, मुख्य निर्वाचन अधिकारी (CEO) की वेबसाइट, पंचायत कार्यालयों, ब्लॉक कार्यालयों, Doordarshan, रेडियो चैनलों, अखबारों और सोशल मीडिया सहित विस्तृत माध्यमों से प्रचारित किया जाना चाहिए, ताकि वंचित मतदाता न्यायालय में अपनी आपत्ति दर्ज करा सकें।
न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने विशेष रूप से कहा है, “जो लोग हटाए गए हैं, वे अपनी शिकायत Aadhaar कार्ड की प्रति के साथ सबमिट कर सकते हैं।”
पृष्ठभूमि और मायने:
पहले, निर्वाचन आयोग ने SIR के लिए 11 दस्तावेजों की एक सूची जारी की थी, जिसमें Aadhaar कार्ड शामिल नहीं था। आयोग का तर्क था कि जबकि Aadhaar पहचान का प्रमाण हो सकता है, यह नागरिकता का प्रमाण नहीं है।
लेकिन अदालत ने इस तर्क को पलटा—न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि Aadhaar “पहचान और आवास का एक कानूनी मान्यता प्राप्त दस्तावेज” है। न्यायमूर्ति सूर्य कांत ने भी जोर दिया कि इसे स्वीकार करना “एक वैधानिक जिम्मेदारी” है।
यह निर्णय विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, जो दस्तावेजों की अनुपलब्धता या कठिनाई के कारण निर्वाचन प्रक्रिया से वंचित होने का जोखिम झेल सकते थे—विशेषकर वंचित और ग्रामीण तबकों में। अदालत का उद्देश्य पारदर्शिता और मतदाता आत्मविश्वास को बढ़ाना है।
राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया:
— नागरिक सुधार संस्थाएँ जैसे ADR (Association for Democratic Reforms) ने इस दिशा में पहल की थी और अदालत ने उन्हें उचित निर्देश दिए।
— कांग्रेस पार्टी ने इसे “लोकतंत्र के लिए एक प्रकाशस्तंभ” करार देते हुए इसका स्वागत किया है, यह कहते हुए कि यह संविधान और चुनावी प्रक्रिया की रक्षा का संकेत है।
आगे की राह:
अदालत ने निर्वाचन आयोग से 22 अगस्त तक इस आदेश का अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा है। इसके बाद इस मामले की अगली सुनवाई होगी।
फिलहाल यह आदेश केवल बिहार में लागू है; यह स्पष्ट नहीं है कि भविष्य में अन्य राज्यों में भी Aadhaar को मान्य दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाएगा या नहीं।
यह आदेश एक अहम न्यायिक हस्तक्षेप है, जो लोकतांत्रिक सहभागिता सुनिश्चित करने और प्रशासन में पारदर्शिता बढ़ाने का संकेत देता है। बिहार में SIR से हटा दिए गए मतदाताओं को अब Aadhaar के सहारे पुनः प्रक्रिया में शामिल होने का अवसर प्राप्त होगा, जिससे लाखों लोगों को अपनी सशक्त पहचान सुनिश्चित करने में मदद मिल सकती है।
अगर आप इस विषय पर और विवरण जानना चाहें—जैसे आयोग द्वारा किस माध्यम से सूचना प्रसारित की जाएगी, या अन्य राज्योंमें इसके प्रभाव—तो बेहिचक पूछिए।
