बीजेपी ने किया अनटेंटेड शिक्षकों के लिए समर्थन






पश्चिम बंगाल की विधानसभा में चल रहे विशेष सत्र के बीच, विधानसभा में विपक्ष के नेता सुवेंदु अधिकारी ने एक महत्वपूर्ण राजनीतिक प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि यदि राज्य सरकार “अदोष” (untainted) शिक्षकों को उनके पदों पर बने रहने के लिए अध्यादेश या विधेयक प्रस्तुत करती है, तो भाजपा उसे समर्थन देने के लिए तैयार है। यह कदम एक अच्छे अवसर के रूप में देखा जा रहा है हाल ही में अनुसन्धान से बचे हुए लगभग 15,000 शिक्षकों की बहाली को लेकर बढ़ रही मांगों के प्रसंग में।




प्रस्ताव और प्रतिक्रिया:

सुवेंदु अधिकारी ने विधानसभा अध्यक्ष बिमान बंद्योपाध्याय से इसे सत्र के अंतिम दिन (4 सितंबर) चर्चा के लिए 30 मिनट का समय देने का अनुरोध किया है। इसके साथ ही उन्होंने मुख्यमंत्री सचिव मनीष पंत को भी पत्र लिखने की योजना बनाई है ताकि सुप्रीम कोर्ट से एक सर्वदलीय संकल्प के माध्यम से “अनटेंटेड” शिक्षकों की बहाली की मांग की जा सके।
उनकी अगुवाई में शिक्षकों के साथ बातचीत में उनकी संवेदना साफ झलकती थी: “नौ साल पहले की परीक्षा की तैयारी फिर से करना आपके लिए मुश्किल है। यही वजह है कि हम सरकार के साथ मिलकर इस संकट का सामूहिक प्रयास से समाधान निकालना चाहते हैं।”
सरकार की कानूनी पृष्ठभूमि:
सुप्रीम कोर्ट ने अप्रैल में 2016 की भर्ती प्रक्रिया को “vitiated and tainted” कहकर रद्द कर दिया था, जिसमें लगभग 25,753 नियुक्तियों को निरस्त कर दिया गया था। बाद में, उन शिक्षकों को “एक्सटेंशन” (वेतन और सेवाएं) दिसंबर 2025 तक दी गई थी, जो “अदोष” माने गए थे।
हाल ही में पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (WBSSC) ने 1,804 “tainted” नामों की सूची प्रकाशित की, जिससे स्पष्ट रूप से यह पता चला कि किन शिक्षकों को पुनर्वस्तै करने की अनुमति नहीं होगी।
इसके अतिरिक्त, सुप्रीम कोर्ट द्वारा “untainted” शिक्षकों की बहाली के संदर्भ में एक पोर्टल भी खोला गया है। इसमें जो शिक्षकों को 2016 में योग्य माना गया, लेकिन नए नियमों (जैसे 50% ग्रेजुएशन मानदंड) के कारण अयोग्य ठहराया गया, उन्हें फिर से आवेदन करने की अनुमति है। यह पोर्टल 23 अगस्त से 2 सितंबर तक खुला था और परीक्षा 7 और 14 सितंबर को निर्धारित की गयी हैं।
शिक्षकों और विरोध प्रदर्शन की वास्तविकता:
2016 की भर्ती में शामिल “untainted” शिक्षक, जो मानते हैं कि उन्होंने योग्यतापूर्ण परीक्षा पास कर ली थी, बार-बार यह सवाल उठाते रहे हैं कि उन्हें पुनः परीक्षा क्यों देनी पड़े जब उनका रिकॉर्ड क्लीन था।
2025 में कोलकाता में ‘नबन्ना मार्च’ जैसे बड़े आंदोलन हुए, जिसमें ‘untainted’ शिक्षकों ने रीइंस्टेटमेंट की मांग की—उनका मानना था कि यदि सूची के आधार पर उन्हें अलग से पहचाना गया है, तो उन्हें सीधे बहाल किया जाना चाहिए।
हालांकि सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए पूरी प्रक्रिया को पहले से निर्धारित समय (दिसंबर 2025) में पूरा करने पर जोर दे रही है, शिक्षकों में अभी भी असंतोष है कि यह केवल अंतरिम राहत है, न कि स्थायी न्याय।
निष्कर्ष:
बीजेपी का यह कदम—एक बार फिर “दोषरहित शिक्षकों” की सैद्धांतिक पहचान के बल पर उनका समर्थन—राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण बदलाव के संकेत दे रहा है। यह प्रयास स्थिति को न्यायपूर्ण और मानवीय तरीके से हल करने का प्रस्ताव है, और यदि राज्य सरकार इसमें विधेयक या अध्यादेश के रूप में आगे बढ़ती है, तो इससे सुप्रीम कोर्ट तक पुनः प्रतिक्रिया भेजी जा सकती है। दूसरी ओर, समयबद्ध नई भर्ती प्रक्रिया और न्यायिक आदेशों का पूरा पालन भी राजनीति और सामाजिक जरूरतों के संतुलन के लिए अपरिहार्य है।
