पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा को लेकर राजनीति तेज़, आरोप-प्रत्यारोप का माहौल






पश्चिम बंगाल में जैसे ही दुर्गा पूजा निकट आ रही है, त्यौहार के आयोजन को लेकर राजनीति में तेजी आ गई है। सरकार, विपक्षी दलों, और पूजा समितियों के बीच मुद्दों की झड़ी लगती दिखाई दे रही है — अनुदान, समय, रीति-रिवाज, और सांस्कृतिक भावना तक पर विवाद चल रहा है।




अनुदान और आर्थिक सहायता:

पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी ने इस बार स्थानीय पूजा समितियों को मिलने वाले अनुदान की राशि बढ़ा दी है। राज्य सरकार ने घोषणा की है कि हर पंडाल / समिति को ₹1,10,000 की सहायता मिलेगी, जो कि पिछले वर्षों की तुलना में अधिक है। इस कदम को पूजा आयोजकों ने स्वागत योग्य बताया है। अनुदान की यह राशि सुरक्षा व्यवस्था, प्रकाश-व्यवस्था, भीड़ नियंत्रण इत्यादि पर खर्च की जाएगी।
पूजा पंडालों का उद्घाटन और समय विवाद:
मुख्यमंत्री ने कई पंडालों का उद्घाटन महालया से पहले कर दिया, जिससे राजनीतिक बहस छिड़ गई है। महालय हिन्दू कैलेंडर में महत्वपूर्ण दिन है, जिसे पारंपरिक रूप से पूजा की शुरुआत की आधिकारिक शुरुआत माना जाता है। विपक्ष ने आरोप लगाया है कि पूर्व समय पर उद्घाटन करना हिन्दू परंपराओं का उल्लंघन है, और यह सिर्फ़ राजनीतिक ध्यान आकर्षित करने की रणनीति है।
सांस्कृतिक राजनीति की भूमिका:
पूजा समितियों पर मिलने वाले अनुदानों और सरकारी सौगातों को राजनीतिक नियंत्रण या समर्थन की रणनीति माना जा रहा है। यह देखा जा रहा है कि पूजा पंडालों के आयोजन और सरकार से जुड़े सामाजिक-सांस्कृतिक क्लबों के ज़रिये जनता से जुड़ने की कोशिश की जा रही है। विपक्ष का कहना है कि सरकार इस तरह स्थानीय समर्थन सुदृढ़ करना चाहती है।
हिन्दू परंपराएँ और भावनाएँ:
परंपरा और धार्मिक भावनाएँ इस बहस के केंद्र में हैं। महालय से पहले पूजा-पंडालों का उद्घाटन करने के फैसले को कुछ लोग धार्मिक मान्यताओं की अनदेखी करार दे रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, सरकार का तर्क है कि पूजा की तैयारी में समय लगता है, और उद्घाटन से लोगों में उत्साह आता है।
निष्कर्ष:
दुर्गा पूजा, जो एक धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहार है, इस वर्ष राजनीति की चश्मे से देखा जा रहा है। सरकारी अनुदानों की राशि, पूजा-पंडाल उद्घाटन का समय, और धार्मिक परंपराएँ — इन सभी पर राजनीतिक दलों के बीच टकराव हो रहा है। यह देखा जाना बाकी है कि यह बहस जनता के उत्सव की भावना को कैसे प्रभावित करेगी, और क्या इस तरह के विवाद से त्योहार के सांस्कृतिक पहलू दबेंगे या नहीं।
