महिषादल राजबाड़ी में दुर्गा पूजा की शुरुआत: परंपरा और श्रद्धा का संगम






पश्चिम बंगाल के पूर्वी मेदिनीपुर जिले के महिषादल राजबाड़ी में इस वर्ष भी दुर्गा पूजा की शुरुआत परंपरागत तरीके से हुई। महालया के दिन देवी पक्ष की शुरुआत होते ही, राजबाड़ी में पूजा की तैयारियाँ शुरू हो गईं। सोमवार को प्रतिपदा तिथि पर, राजपरिवार के सदस्यों की उपस्थिति में, आस्थावान भक्तों ने अश्वत्थ वृक्ष के नीचे स्थापित ‘घट’ की पूजा की। यह परंपरा 250 वर्षों से अधिक पुरानी है और आज भी उसी श्रद्धा और विधिपूर्वक निभाई जाती है।




महिषादल राजबाड़ी की दुर्गा पूजा की शुरुआत रानी जानकी के समय, वर्ष 1774 में हुई थी। तब से लेकर अब तक, यह पूजा राजमहल के ठाकुरदालान में निरंतर आयोजित होती आ रही है। हालांकि समय के साथ पूजा की भव्यता में कमी आई है, लेकिन परंपराओं का निर्वाहन पहले जैसा ही है।

इस वर्ष, प्रतिपदा से लेकर सप्तमी तक, घट की पूजा होती है, जबकि सप्तमी से मूर्ति पूजा की शुरुआत होती है। पूजा स्थल के पास रखे गए धान के बोरों की परंपरा भी जारी है, जो एक समय में फसल की समृद्धि की कामना के रूप में शुरू हुई थी।
महिषादल राजबाड़ी की दुर्गा पूजा न केवल स्थानीय लोगों के लिए, बल्कि दूर-दराज से आने वाले पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र है। यहाँ की परंपराएँ और इतिहास, बंगाल की सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखते हैं।
महिषादल राजबाड़ी की दुर्गा पूजा की परंपरा, श्रद्धा और संस्कृति का अद्वितीय संगम प्रस्तुत करती है, जो आज भी समय के साथ अडिग खड़ी है।
