खड़गपुर प्रेस क्लब के सहयोग से परामर्श केंद्र ‘मन मरम्मत’ ने किया जागरूकता शिविर का आयोजन






विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस-2025 के अवसर पर परामर्श केंद्र ‘मन मरम्मत’ ने जागरूकता शिविर का आयोजन किया। इस दौरान कुछ महत्वपूर्ण बातें सामने आईं।





उदाहरण के लिए, 2018 के विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक सर्वेक्षण के अनुसार, भारत चीन या अमेरिका से भी ज़्यादा अवसादग्रस्त देश है। यहाँ 6.5% लोग, यानी 8.5 करोड़ लोग किसी न किसी तरह की मानसिक बीमारी जैसे अवसाद, चिंता विकार, पैनिक अटैक, ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर या पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर से पीड़ित हैं। हालाँकि यह आँकड़ा तो बस एक छोटा सा हिस्सा है। सर्वेक्षण में पाया गया कि कॉर्पोरेट भारत में काम करने वाले 50% कर्मचारी अवसाद या चिंता से ग्रस्त हैं। भारत में हर एक लाख लोगों में से 21 लोग प्रतिदिन आत्महत्या करते हैं।


किशोरों में आत्महत्या की दर दुनिया में सबसे ज़्यादा भारत में है। मानसिक रोग से ग्रस्त 70% से 92% रोगियों को कोई भी सेवा नहीं मिल पाती क्योंकि भारत में प्रति दस लाख लोगों पर केवल 3 मनोचिकित्सक, 0.7 मनोवैज्ञानिक और 0.7 सामाजिक कार्यकर्ता हैं और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में जागरूकता बहुत कम है। एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि दुनिया में 1 अरब लोग मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं। हालाँकि, मानसिक बीमारी को लेकर समाज का कलंक-निषेध अभी भी खत्म नहीं हुआ है। हालाँकि, उम्मीद की किरण यह है कि युवा लड़के-लड़कियों के प्रति यह कलंक-निषेध बहुत कम है। आज बहुत से लोग जागरूक हैं। हालाँकि राज्य की पहल और निवेश दोनों ही बहुत कम हैं। इसलिए, मानसिक स्वास्थ्य के विस्तार के लिए जागरूकता एक बड़ा साधन हो सकती है।

मनोवैज्ञानिक परामर्शदाता प्रसेनजीत दे बताते हैं कि मानसिक तनाव क्यों बढ़ता है और इसे कैसे कम किया जा सकता है। नैदानिक मनोवैज्ञानिक पॉलमी सेनगुप्ता बताती हैं कि आपदाओं या आपातकालीन स्थितियों जैसे बाढ़, महामारी आदि के दौरान मानसिक स्वास्थ्य सेवाएँ कैसे प्रदान की जा सकती हैं।
… इस अवसर पर खड़गपुर प्रेस क्लब के सचिव सैकत संतरा ने कहा कि हम सभी पत्रकार समाज के मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए कार्यरत रहे हैं। पूरे कार्यक्रम का संचालन संस्था की सचिव संघमित्रा डे ने किया।
প্রতিবছরের মতো কাউন্সেলিং সেন্টার ‘মন মেরামত’ ‘বিশ্ব মানসিক স্বাস্থ্য দিবস -2025 উপলক্ষ্যে সচেতনতা শিবির আয়োজন করেছিল। আলোচনায় উঠে আসে কিছু গুরুত্বপূর্ন কথা।
যেমন ২০১৮ সালে WHO-এর সমীক্ষা অনুযায়ী ভারত, চীন বা USA-এর থেকেও ডিপ্রেসড কানট্রি। এখানে 6.5% মানুষ আর্থৎ 8.5 কোটি মানুষ কোন না কোন ডিপ্রেসান, অ্যানজাইটি ডিস অর্ডার, প্যানিক অ্যাটাক, অবসেসিভ কমপালসিভ ডিসঅর্ডার বা পোস্ট ট্রমাটিক স্ট্রেস ডিসঅর্ডারের মতো মানসিক রোগে আক্রান্ত।যদিও এই পরিসংখ্যান হিমশৈলের চূড়া মাত্র। সমীক্ষায় দেখা গেছে কর্পোরেটে চাকরিরত ভারতের 50% এমপ্লয়ী ডিপ্রেশান বা অ্যানজাইটিতে ভুগছে। ভারতে প্রতি এক লক্ষ মানুষের মধ্যে প্রতিদিন ২১ জন আত্মহত্যা করছে।
টিনএজার সুইসাইড বিশ্বের সব থেকে বেশি ভারতে। মানসিক রোগে আক্রান্ত রোগীদের 70% থেকে 92% কোন পরিষেবা পায়না কারণ ভারতে প্রতি দশলক্ষ মানুষে মাত্র 3 জন সাইক্রিয়াটিস্ট, 0.7 জন সাইকোলজিস্ট এবং 0.7 জন সমাজকর্মী রয়েছে এবং মানসিক স্বাস্থ্য বিষয়ক সচেতনতা অত্যন্ত কম।সম্প্রতি একটি সমীক্ষায় দেখা গেছে পৃথিবীর 100 কোটি মানুষ মানসিক রোগে আক্রান্ত।তাও মানসিক রোগ নিয়ে এখনো সমাজের ট্যাবু-স্টিগমার শেষ নেই।তবে আশার আলো কম বয়েসি ছেলে মেয়েদের ট্যাবু স্টিগমা অনেকটাই কম।বহু মানুষ আজ সচেতন।যদিও রাষ্ট্রের উদ্যোগ এবং বিনিয়োগ দুটোই অত্যন্ত কম।তাই মানসিক স্বাস্থ্যকে প্রসারিত করতে হলে সচেতনতাই হতে পারে একটা বড় হাতিয়ার।
সাইকোলজিকাল কাউন্সেলার প্রসেনজিৎ দে মানসিক চাপ কেন বাড়ে এবং তা কিভাবে কমানো যেতে পারে সে বিষয়ে বলেন।ক্লিনিকাল সাইকোলজিস্ট পৌলমী সেনগুপ্ত আপদ কালীন বা জরুরি পরিস্থিতি যেমন বন্যা , মহামারী ইত্যাদি সময়ে কিভাবে মানসিক স্বাস্থের পরিষেবা দেওয়া যায় সে বিষয়ে বলেন।
জেরেনটোলজিস্ট সুপ্রিয়া চক্রবর্তী বয়স্ক মানুষদের মানসিক স্বাস্থ্য ও তাদের যত্ন কিভাবে নেওয়া যায় সে বিষয়ে বলেন।এ দিন খড়্গপুর প্রেস ক্লাবের সেক্রেটারি সৈকত সাঁতরা বলেন আমরা সমস্ত সাংবাদিকরা সমাজের মানসিক স্বাস্থ্য ভালো রাখার জন্যই কাজ করে চলেছি।সমস্ত অনুষ্ঠানটি সঞ্চালনা করেন সংস্থার সম্পাদিকা সংঘমিত্রা দে।
