बटतला में रुद्रकाली का भयावह रूप — श्रद्धा और भक्ति का संगम






काली पूजा के अवसर पर मेदिनीपुर शहर के प्रसिद्ध बटतला चौराहे पर रुद्रकाली मां की प्रतिमा ने इस बार श्रद्धालुओं का दिल जीत लिया। देवी का उग्र और भयानक रूप देखकर जहां एक ओर लोगों के रोंगटे खड़े हो गए, वहीं दूसरी ओर भक्तिभाव से सभी के मन भर गए।





देवी के रौद्र रूप ने किया आकर्षित:

दीपों की रोशनी और धूप की महक के बीच देवी की प्रतिमा अपने रौद्र स्वरूप में दिखाई दी। बड़ी लाल आंखें, खुला हुआ मुख, मुण्डमाला, हाथ में खड्ग और कटे हुए सिर की मूर्ति—इन सबने प्रतिमा को असाधारण रूप दिया। यह दृश्य भय के साथ-साथ शक्ति और न्याय का प्रतीक बन गया।
स्थानीय पुजारी नेपाल भट्टाचार्य ने बताया, “मां रुद्रकाली का यह स्वरूप अन्याय और अधर्म के विनाश का प्रतीक है। यह रूप हमें याद दिलाता है कि शक्ति का असली उद्देश्य बुराई का अंत करना है।”
भक्तों की भारी भीड़:

शाम से ही पूजा पंडाल में भक्तों की लंबी कतारें लगने लगी थीं। आसपास के गांवों और जिलों से हजारों श्रद्धालु मां के दर्शन के लिए पहुंचे। एक स्थानीय निवासी ने कहा,
> “पहले इस मूर्ति को देखकर डर लगता था, पर अब इस रूप में ही मां की असली शक्ति नजर आती है।”
प्रतिमा की कलात्मकता:
रुद्रकाली की इस प्रतिमा का निर्माण स्थानीय कलाकारों ने कई हफ्तों की मेहनत से किया है। मूर्ति की आंखें बड़ी और तेजस्वी बनाई गई हैं, चेहरे पर गुस्से का भाव और पैरों के नीचे भगवान शिव का अंकन किया गया है, जो मां के सर्वश्रेष्ठ शक्ति रूप का प्रतीक है।
सांस्कृतिक पहचान:

इतिहासकार अरिंदम मुखोपाध्याय बताते हैं कि रुद्रकाली का यह रूप केवल भय नहीं, बल्कि परिवर्तन और न्याय की शक्ति का दर्शन कराता है। इस प्रकार की पूजा को तांत्रिक परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है।
बटतला के अलावा हाटतला, अमरनंदतला और बड़बाजार श्मशान काली मंदिर में भी रुद्रकाली पूजा होती है, लेकिन बटतला की प्रतिमा अपने उग्र और अनोखे रूप के कारण सबसे प्रसिद्ध है।
निष्कर्ष:
रुद्रकाली मां का यह रूप भक्तों को यह संदेश देता है कि जीवन में अन्याय और अंधकार चाहे जितना भी बढ़े, अंततः सत्य और शक्ति की ही विजय होती है।
इस बार की पूजा ने बटतला को फिर से श्रद्धा और शक्ति के प्रतीक स्थल के रूप में स्थापित कर दिया है।
