रोजगार की तलाश में गुजरात गए बंगाल के मछुआरे की पाकिस्तान की जेल में मौत, उठे सवाल






पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर जिले में एक दिल दहला देने वाली खबर सामने आई है, जिसने राज्य में ‘प्रवासी मछुआरों’ की बढ़ती संख्या और उनकी सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। रोजगार की तलाश में अपना घर छोड़कर गुजरात गए एक बंगाली मछुआरे की पाकिस्तान की जेल में मौत हो गई है।




क्या है पूरा मामला?

मृतक की पहचान स्वपन राणा के रूप में हुई है, जो कांथी के बामुनिया ग्राम पंचायत के दक्षिण पाइकाबड़ गांव के रहने वाले थे। शनिवार सुबह जिला मत्स्य विभाग के जरिए उनके परिवार को यह दुखद समाचार मिला।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, स्वपन राणा 2023 में काम की तलाश में पहले केरल और फिर गुजरात गए थे। जनवरी 2024 से उनके परिवार का उनसे संपर्क टूट गया था। बाद में पता चला कि गुजरात में मछली पकड़ते समय उनका ट्रॉलर गलती से पाकिस्तानी समुद्री सीमा में प्रवेश कर गया था, जिसके बाद पाकिस्तानी अधिकारियों ने उन्हें और उनके साथियों को गिरफ्तार कर लिया था। कैद के दौरान बीमारी के चलते उनकी मौत हो गई।
स्वपन के बेटे, चंद्रकांत राणा ने बताया कि उनके पिता के साथ गिरफ्तार किए गए अन्य छह मछुआरे भी बंगाली बताए जा रहे हैं।
बंगाल छोड़कर क्यों जा रहे हैं मछुआरे?
इस घटना ने राज्य में मछुआरों के पलायन के मुद्दे को उजागर किया है। कांथी के स्थानीय मछुआरा संगठनों का कहना है कि कोरोना महामारी के बाद से पूर्व मेदिनीपुर के मछुआरों में दूसरे राज्यों (जैसे केरल, गुजरात, तमिलनाडु और महाराष्ट्र) में जाने का चलन बढ़ा है। इसके पीछे मुख्य कारण आर्थिक तंगी है:
कम आय: बंगाल में छोटे मछुआरों को महीने में मुश्किल से 8-10 हजार रुपये और ट्रॉलर पर काम करने वालों को 12-15 हजार रुपये मिलते हैं।
दूसरे राज्यों में बेहतर वेतन: अन्य राज्यों में वही काम करने के लिए उन्हें 17-18 हजार रुपये वेतन मिलता है। इसके अलावा, सीजन की शुरुआत में 1 से 1.5 लाख रुपये तक का एडवांस और सूखी मछली में हिस्सा भी दिया जाता है।
मछली की कमी: स्थानीय समुद्र में मछली की आवक कम होने के कारण कई ट्रॉलर और नावें बंद पड़ी हैं, जिससे रोजगार का संकट पैदा हो गया है।
उठते सवाल
स्वपन राणा की मौत न केवल एक परिवार की त्रासदी है, बल्कि यह उस मजबूरी की ओर भी इशारा करती है जिसके कारण बंगाल के “माछे-भाते” (मछली-भात) खाने वाले मछुआरे अपनी जान जोखिम में डालकर हजारों किलोमीटर दूर जाने को मजबूर हैं। स्थानीय प्रशासन और सरकार के लिए यह चिंता का विषय है कि क्या राज्य में रोजगार के पर्याप्त अवसर न होने के कारण ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं।
