December 5, 2025

बिहार का ‘डॉग बाबू’ मामला: एक कुत्ते के नाम जारी हुआ आवासीय प्रमाणपत्र, प्रशासन में हड़कंप

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बिहार के पटना ज़िले के मसौढ़ी ब्लॉक से एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है जिसने प्रशासन को कटघरे में खड़ा कर दिया है। यहाँ “डॉग बाबू” नाम के एक कुत्ते के नाम पर आवासीय प्रमाणपत्र (Residence Certificate) जारी कर दिया गया। इस मामले के उजागर होते ही सोशल मीडिया पर हलचल मच गई और राजनीतिक हलकों में सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठने लगे।

🔍 क्या है पूरा मामला?

यह प्रमाणपत्र RTPS पोर्टल से 24 जुलाई को दोपहर 3:56 बजे जारी किया गया और महज दो मिनट बाद 3:58 बजे रद्द भी कर दिया गया।

दस्तावेज़ में कुत्ते का नाम “Dog Babu”, पिता का नाम “Kutta Babu” और माता का नाम “Kutiya Devi” लिखा गया था।

आवेदन के साथ कुत्ते की तस्वीर भी संलग्न थी, जिससे साफ है कि आवेदन मज़ाकिया तरीके से भरा गया था।

⚠️ प्रशासनिक चूक और संदेह:

इतनी बड़ी चूक के लिए RTPS सिस्टम की सुरक्षा और डिजिटल वेरिफिकेशन प्रक्रिया पर सवाल उठे हैं।

सरकारी पोर्टल पर किसी भी प्रमाणपत्र को जारी करने के लिए डिजिटल सिग्नेचर डिवाइस (Dongle) की ज़रूरत होती है। विशेषज्ञों का कहना है कि या तो सिस्टम के अंदर से लापरवाही हुई है या जानबूझकर मज़ाक करने के लिए इसका दुरुपयोग किया गया।

🕵️ जांच और कार्रवाई:

पटना के ज़िलाधिकारी त्यागराजन ने तुरंत मामले की जांच के आदेश दिए।

आईटी सहायक मिंटू कुमार नीरला को गिरफ्तार कर जेल भेजा गया, वह पहला व्यक्ति था जिसने इस फाइल को एक्सेस किया।

राजस्व पदाधिकारी मुरारी चौहान को निलंबित किया गया और कई अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया गया।

इस पूरे मामले में एफआईआर दर्ज कर दी गई है और अज्ञात लोगों के खिलाफ भी जांच जारी है।

💬 राजनीतिक और सामाजिक प्रतिक्रिया:

योगेन्द्र यादव ने चुटकी लेते हुए कहा – “जब ‘डॉग बाबू’ को नागरिक मानकर प्रमाणपत्र दिया जा सकता है, तब असली लोगों के आधार या पहचान पत्र को फर्जी कहकर खारिज करना अजीब है।”

आरजेडी नेता तेजस्वी यादव और विपक्षी दलों ने भी इस मुद्दे को उठाते हुए चुनावी प्रक्रिया और प्रशासनिक सिस्टम की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किए।

सोशल मीडिया पर लोग इसे लेकर मीम्स बना रहे हैं, कोई पूछ रहा है – “अब ‘बिल्ली मौसी’ का प्रमाणपत्र कब आएगा?”

📌 निष्कर्ष:

“डॉग बाबू” कांड ने दिखा दिया है कि डिजिटल प्रशासन में लापरवाही किस तरह शर्मिंदगी का कारण बन सकती है। यह घटना सिर्फ एक मज़ाक नहीं, बल्कि सिस्टम की खामियों और जवाबदेही की कमी का आईना है। अब देखना होगा कि बिहार प्रशासन इस मामले से क्या सबक लेता है और ऐसे “डिजिटल मज़ाक” को रोकने के लिए क्या ठोस कदम उठाता है।

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