बागी तेवर दिखा रहे शुभेंदु अधिकारी के मन में आखिर चल क्या रहा है ??

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खड़गपुर : कभी नरम , कभी गरम तेवर दिखा रहे तृणमूल कांग्रेस नेता और पश्चिम बंगाल के परिवहन मंत्री शुभेंदु अधिकारी के मन में आखिर चल क्या रहा है ? राजनीतिक हलकों से लेकर सत्ता के राजपथ तक इस सवाल का जवाब बड़ी गंभीरता से तलाशा जा रहा है । अधिकारी की भावी रणनीति पर विरोधियों की भी बारीक नजर है ।

माकपा और वाममोर्चा के 34 साल चले साम्राज्य की चूलें हिलाने में अलग – अलग दो घटनाओं और अंचलों का विशेष योगदान रहा है । पहला नंदीग्राम का ऐतिहासिक भूमि आंदोलन और दूसरा जंगल महल में चली हिंसक माओवादी गतिविधियां । दोनों ही कालक्रम में अधिकारी परिवार का विशेष योगदान माना जाता है । जानकारों की मानें तो इन दो महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं ने ही तत्कालीन सत्ता विरोधी ताकतों खासकर तृणमूल कांग्रेस नेताओं को माकपा के मजबूत किले यानि राज्य के ग्रामांचलों में उपस्थिति दर्ज कराने का मौका दिया । तब की यूपीए -२ सरकार में सात केंद्रीय मंत्रियों की बदौलत तृणमूल कांग्रेस को माकपा की राहों में बारूद बिछाने का अवसर प्रदान किया । इसमें भी तत्कालीन केंद्रीय मंत्री शिशिर अधिकारी और उनके युवा पुत्र शुभेंदु अधिकारी की भूमिका महत्त्वपूर्ण रही ।
लेकिन अब इन्हीं शुभेंदु अधिकारी का भावी रुख दलीय नेताओं और कार्यकर्ताओं को अबूझ पहेली की तरह लग रहा है । ‘ आमरा दादार अनुगामी ‘ ( हम बड़े भाई के समर्थक हैं ) और अधिकारी की तस्वीरों वाले ‘ टीम अनुगामी ‘ के पोस्टर – बैनर ग्राम बांग्ला की पगडंडियों पर भारी कौतूहल पैदा कर रहे हैं । इसमें सत्ता के पैरोकारों के समय – समय पर दिए जाने वाले बयान घटनाक्रमों में रोमांच का तड़का लगा रहे हैं । अधिकारी पूर्व हैसियत और ठसक के साथ टी एम सी में ही बने रहेंगे या फिर कोई नई राह पकड़ेंगे , यह सवाल राजनैतिक राहों में नित नई धुंध पैदा कर रहा है । एक वर्ग का मानना है कि इसके पीछे तृणमूल कांग्रेस कार्यकर्ताओं के उस वर्ग की शह है जो पार्टी की ताकत बढ़ने के बाद संगठन और सत्ता में खुद को उपेक्षित महसूस कर रहा है । नवागतों की भीड़ के बीच सारी रस्साकसी इसी बात पर है ।
कयासों और अटकलों पर सटीक जवाब अधिकारी परिवार के खासे करीबी माने जाने वाले तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व नपाध्यक्ष जवाहर लाल पाल ने पेश किया जो हाल में कोरोना से लड़ाई लड़ कर लौटे हैं । पाल के मुताबिक 1998 में पार्टी बनाने वाले कभी इसे छोड़ने या तोड़ने की नहीं सोच सकते । हालांकि यह सही है कि नवागतों की भीड़ बढ़ने के बाद समर्पित नेताओं और कार्यकर्ताओं का एक वर्ग खुद को उपेक्षित व आहत महसूस कर रहा है । उन्होंने कहा कि जबकि 1998 से पार्टी के साथ मजबूती से खड़ा यह वर्ग बदले में अपने लिए सिर्फ सम्मान चाहता है इसके सिवा और कुछ भी नहीं ।

✍तारकेश कुमार ओझा

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