दिल्ली उच्च न्यायालय ने टीएमसी सांसद को जारी किया कारण बताओ नोटिस
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29 मई 2025:




दिल्ली उच्च न्यायालय ने तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के एक सांसद को एक विवादित टिप्पणी के मामले में कारण बताओ नोटिस जारी किया है। इस नोटिस में अदालत ने सांसद से यह स्पष्ट करने को कहा है कि क्यों न उन्हें हिरासत में लिया जाए। इस अदालती हस्तक्षेप ने राजनीतिक और कानूनी गलियारों में हलचल पैदा कर दी है।

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🔹 क्या है मामला?
टीएमसी के इस सांसद पर आरोप है कि उन्होंने हाल ही में एक सार्वजनिक कार्यक्रम के दौरान संवेदनशील विषय पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। उस टिप्पणी को लेकर देश के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए और सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिलीं।
कई संगठनों और आम नागरिकों ने इस टिप्पणी को “उकसाने वाला” और “सांप्रदायिक सौहार्द्र को नुकसान पहुंचाने वाला” बताया। इसी पृष्ठभूमि में यह मामला दिल्ली उच्च न्यायालय में लाया गया।
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⚖️ अदालत की सुनवाई में क्या हुआ?
मामले की प्रारंभिक सुनवाई के दौरान अदालत ने टिप्पणी की कि:
> “एक जनप्रतिनिधि के शब्दों का समाज पर गहरा असर होता है। ऐसे में यदि कोई संसद सदस्य असंवेदनशील वक्तव्य देता है, तो उस पर संवैधानिक जिम्मेदारियों के तहत कार्रवाई होनी चाहिए।”
इसके बाद अदालत ने कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए पूछा:
“क्यों न अदालत उन्हें हिरासत में लेने पर विचार करे?”
“क्या यह टिप्पणी दंगा फैलाने या समाज को बांटने का प्रयास है?”
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📜 नोटिस की अवधि और सांसद की प्रतिक्रिया
अदालत ने सांसद को 7 दिन के भीतर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया है। टीएमसी की ओर से अभी तक कोई औपचारिक बयान नहीं आया है, लेकिन सूत्रों के अनुसार सांसद ने अपने करीबी सहयोगियों से कहा है कि उन्होंने “किसी भी समूह की भावनाओं को ठेस पहुंचाने की मंशा से बयान नहीं दिया था”।
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🏛️ राजनीतिक प्रतिक्रिया
टीएमसी नेतृत्व ने फिलहाल चुप्पी साध रखी है। विपक्षी दलों ने इस मुद्दे को संसद और मीडिया में जोरशोर से उठाना शुरू कर दिया है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ने इस टिप्पणी की निंदा करते हुए त्वरित कानूनी कार्रवाई की मांग की है।
भाजपा के प्रवक्ता ने बयान जारी कर कहा:
“यह निंदनीय है कि एक सांसद समाज में विघटनकारी भाषा का प्रयोग करता है। हम अदालत से अपेक्षा करते हैं कि वह कठोर कदम उठाए।”
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🔍 कानूनी दृष्टिकोण से संभावनाएं
कानून विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सांसद का जवाब संतोषजनक नहीं हुआ, तो अदालत उनके खिलाफ:
गिरफ्तारी वारंट जारी कर सकती है,
या कोर्ट की अवमानना की कार्यवाही शुरू हो सकती है।
वहीं, सांसद को इस मामले में अग्रिम जमानत लेने की कोशिश करते हुए भी देखा जा सकता है।
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📢 निष्कर्ष:
यह मामला केवल एक विवादास्पद टिप्पणी तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भारत में जनप्रतिनिधियों की ज़िम्मेदारी, भाषण की मर्यादा और कानूनी जवाबदेही पर एक अहम बहस भी शुरू करता है। दिल्ली उच्च न्यायालय का यह रुख यह दर्शाता है कि राजनीतिक पद पर रहते हुए व्यक्ति के शब्दों की अहमियत और उनके प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
आनेवाले दिनों में अदालत की अगली सुनवाई पर देशभर की निगाहें टिकी रहेंगी।
