December 17, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने मांगी रिपोर्ट: IIT खड़गपुर और शारदा यूनिवर्सिटी में छात्र आत्महत्या मामलों पर चिंता

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देश के प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों में हो रही आत्महत्याओं को गंभीरता से लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने IIT खड़गपुर और शारदा यूनिवर्सिटी से रिपोर्ट तलब की है। कोर्ट ने इन घटनाओं पर स्वतः संज्ञान (Suo Moto) लेते हुए सवाल किया है कि क्या इन मामलों में समय पर पुलिस को सूचना दी गई और FIR दर्ज की गई या नहीं।

यह फैसला न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने सुनाया। अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि इन संस्थानों ने आत्महत्या की घटनाओं को गंभीरता से नहीं लिया और कानूनी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया, तो संस्थानों के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्रवाई की जाएगी।

मामले की पृष्ठभूमि:

IIT खड़गपुर में 21 वर्षीय अंतिम वर्ष के छात्र रीतम मंडल का शव 18 जुलाई को हॉस्टल के कमरे से बरामद हुआ। यह संस्थान में इस वर्ष की चौथी आत्महत्या है, जिससे छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य और संस्थान के भीतर के दबावों को लेकर चिंता और भी गहरी हो गई है।

वहीं, शारदा यूनिवर्सिटी में 24 वर्षीय डेंटल की छात्रा ज्योति जोगदा ने आत्महत्या कर ली। अपनी सुसाइड नोट में उन्होंने दो प्रोफेसरों को प्रताड़ना का जिम्मेदार ठहराया, जिसके बाद दोनों शिक्षकों को गिरफ्तार कर लिया गया।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी:

कोर्ट ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि शैक्षणिक परिसरों में कुछ बहुत ही गंभीर गड़बड़ी है। इन संस्थानों में छात्रों पर अत्यधिक दबाव डाला जा रहा है, जिससे उन्हें आत्मघाती कदम उठाने पड़ रहे हैं।”

कोर्ट ने पूछा कि क्या आत्महत्या के बाद तुरंत पुलिस को सूचित किया गया, और FIR समय पर दर्ज की गई? यदि नहीं, तो संबंधित यूनिवर्सिटी प्रशासन को अदालत की अवमानना के तहत जेल भेजा जा सकता है।

मार्च 2024 के आदेश का पालन:

सुप्रीम कोर्ट पहले ही एक ऐतिहासिक आदेश में यह स्पष्ट कर चुका है कि हर छात्र आत्महत्या के मामले में अनिवार्य रूप से FIR दर्ज किया जाना चाहिए, ताकि निष्पक्ष जांच हो सके और संबंधित जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित की जा सके।

कोर्ट के निर्देश:

1. दोनों शिक्षण संस्थानों को एक सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट दाखिल करनी होगी — जिसमें आत्महत्या की घटना की सूचना कब दी गई, FIR कब दर्ज हुई, और अब तक जांच में क्या प्रगति हुई, इसका विवरण देना होगा।

2. यदि रिपोर्ट संतोषजनक नहीं हुई या FIR देर से दर्ज की गई, तो संस्थान के अधिकारियों पर कार्रवाई की जा सकती है।

3. कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया कि छात्रों की मानसिक सेहत के लिए कॉलेजों और यूनिवर्सिटियों को विशेष कदम उठाने होंगे, जिनमें परामर्श सेवाएं और तनाव प्रबंधन प्रशिक्षण शामिल हैं।

निष्कर्ष:

देश के प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थानों में लगातार हो रही छात्र आत्महत्याएं अब केवल सामाजिक या मानसिक स्वास्थ्य का विषय नहीं रह गई हैं, बल्कि यह एक न्यायिक और प्रशासनिक चिंता का केंद्र बन चुकी है। सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप इस दिशा में एक साहसिक कदम माना जा रहा है जो भविष्य में छात्रों की भलाई के लिए शिक्षा तंत्र में जरूरी बदलाव लाने का मार्ग प्रशस्त कर सकता है।

 

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