क्या वाकई है पश्चिम बंगाल में वर्चुअल गवाही का ढांचा मौजूद? हाई कोर्ट ने मुख्य सचिव से दी हलफ़नामा पेश करने की मांग






कोलकाता उच्च न्यायालय ने सवाल उठाया है कि क्या वाकई राज्य में वर्चुअल गवाही (वीडियो या अन्य तकनीकी माध्यम से गवाही) के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा तैयार है। सोमवार को एक डिवीजन बेंच—जिसमें न्यायमूर्ति देवांशु बसक और न्यायमूर्ति शब्बर रशीदी शामिल हैं—ने दो सप्ताह के भीतर मुख्य सचिव से इस संबंध में हलफ़नामा पेश करने का निर्देश दिया। साथ ही, उन्होंने प्रशासन को राज्य के सभी जिलों में जाकर स्थिति का पता लगाकर रिपोर्ट जमा करने का आदेश दिया है।




न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यदि यह पाया जाता है कि राज्य सरकार द्वारा समय पर पहल नहीं की गई या बजट उपलब्ध नहीं कराए जाने के कारण वर्चुअल गवाही के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर में कमी है, तो न्यायालय प्रदेश के संविलियन (Consolidated) फंड से आवश्यक वित्तपोषण उपलब्ध कराएगा।

परिवारिक अपराध प्रक्रिया (CrPC) में सुधार की दिशा में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (Bharatiya Nagorik Suraksha Sanhita, BNSS) की धारा 254(2) के माध्यम से जुलाई में वर्चुअल गवाही की व्यवस्था शुरू की गई थी। इस व्यवस्था के अनुसार डॉक्टर, मजिस्ट्रेट, फॉरेंसिक विशेषज्ञ और पुलिस अधिकारियों की गवाही वीडियो के माध्यम से ली जा सकती है।
बीते साल 26 जुलाई को उच्च न्यायालय ने यह निर्दिष्ट किया था कि सभी निचली अदालतों, सुधार गृहों, थानों, अस्पतालों और फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशालाओं को वर्चुअल गवाही की व्यवस्था से संबंधित उचित प्रबंध करने होंगे। इस दौरान सरकारी कर्मचारियों को अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए बाध्य नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे अवर्णनीय विलम्ब और अनावश्यक प्रक्रिया हो सकती है।
हालांकि, न्यायालय ने यह भी नोट किया कि अभी भी कई निचली अदालतें सरकारी कर्मचारियों को ज़बरदस्ती सम्मन भेज रही हैं, जिससे वे वर्चुअल गवाही से वंचित रह जाते हैं और प्रक्रिया धीमी हो जाती है।
इस सुनवाई में राज्य प्रशासन की ओर से प्रस्तुत वकील सैकेतन बंद्योपाध्याय ने यह सुनाया कि कई जिलों में वर्चुअल गवाही का ढांचा ही मौजूद नहीं है। विशेष रूप से एनडीपीएस मामले जैसे मामलों में विशेष अदालतों का संचालन भी सही से नहीं हो पा रहा है, क्योंकि पर्याप्त बजट नहीं आवंटित किया जा रहा है।
न्यायालय ने उल्लेख किया कि एडवोकेट जनरल भी अन्य अदालत में व्यस्त होने के कारण इस सुनवाई में उपस्थित नहीं हो पाए, जिससे स्थिति की गंभीरता और निर्देश की आवश्यकता और बढ़ गई।
डिवीजन बेंच ने स्पष्ट किया कि राज्य की प्रशासनिक मशीनरी को न केवल बुनियादी ढांचे की स्थिति बतानी होगी, बल्कि तदर्थ क्षमता, संसाधन और मानव संसाधन (लोकबल) से संबंधित जानकारी भी रिपोर्ट में शामिल करनी होगी, ताकि न्यायालय उचित आदेश जारी कर सके।
मुख्य बिंदु संक्षेप में:
कोलकाता उच्च न्यायालय ने मुख्य सचिव को दो सप्ताह में हलफ़नामा पेश करने का आदेश दिया।
प्रत्येक जिले में वर्चुअल गवाही के इन्फ्रास्ट्रक्चर की स्थिति की रिपोर्ट मांगी गई।
अगर कमी पाई जाती है, तो न्यायालय Consolidated Fund से वित्तपोषण कराने में मदद करेगा।
BNSS की धारा 254(2) के तहत सरकारी पदाधिकारियों को वर्चुअल गवाही की अनुमति है।
न्यायालय ने शिकायत नोट की कि कई अदालतें अभी भी सम्मन भेजकर शारीरिक उपस्थिति पर ही निर्भर रही हैं।
वकील से कहा गया, कि कई जिलों में आवश्यक ढांचा व वित्तपोषण की कमी है।
रोग लक्षित ढांचा, संसाधन और मानव शक्ति पर विस्तृत जानकारी रिपोर्ट में देनी होगी।
