अमेरिका में H-1B वीज़ा पर $100,000 की नई एक-बार की फीस: भारत के आईटी पेशेवरों और परिवारों में चिंताएँ






अमेरिका ने एक ऐसा निर्णय लिया है जो भारत के तकनीकी पेशेवरों और आईटी-उद्योग को प्रभावित कर सकता है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने 19 सितंबर को एक कार्यादेश जारी किया है जिसमें नए H-1B वीज़ा आवेदनकर्त्ताओं को एक-बार $100,000 की फीस चुकानी होगी। यह नीति 21 सितंबर से प्रभावी हो गई है।




फीस बढ़ने के मुख्य बिंदु:

यह शुल्क केवल नए आवेदन (new H-1B visa petitions) पर लागू होगा, यानी उन लोगों पर जो पहली बार या नए वीज़ा के लिए आवेदन कर रहे हैं।
मौजूदा H-1B वीज़ाधारकों, वीज़ के नवीनीकरण (renewal) पर आवेदन करने वालों या जो पहले से वीज़धारी हैं, उन पर यह नई फीस लागू नहीं होगी।
इसके अलावा, गृह सुरक्षा विभाग (Department of Homeland Security) को अधिकार मिलेगा कि वह “राष्ट्रीय हित (national interest)” के आधार पर कुछ उद्योगों या परियोजनाओं के लिए इस शुल्क को माफ़ कर दे।
भारत पर संभावित प्रभाव:
1. आईटी उद्योग में असमंजस और आर्थिक दबाव
भारतीय आईटी कंपनियाँ जो अमेरिका में प्रोजेक्ट्स करती हैं, उन पर नया खर्च बढ़ सकता है। श्रम लागत बढ़ने और वीज़ प्रायोजन (visa sponsorship) खर्च बढ़ने से प्रोजेक्ट बिडिंग और उनके मुनाफ़े पर असर हो सकता है।
2. शेयर बाज़ार और निवेशक मनो-स्थिति प्रभावित
सूचना-प्रौद्योगिकी (IT) सेक्टर के शेयरों में गिरावट देखने को मिली है क्योंकि निवेशकों ने इस नीति को एक नकारात्मक संकेत माना।
3. प्रवास (migration) योजनाओं में बदलाव की संभावना
तकनीकी पेशेवर जो अमेरिका जाना चाहते थे, उन्हें अब विचार करना पड़ेगा कि क्या वे इस खर्च को स्वीकार कर पाएँगे, या देश में ही रोजगार व अवसर तलाशेंगे। इससे ‘टैलेंट वापसी’ (return of skilled professionals) की संभावना बढ़ सकती है।
4. पारिवारिक स्थिति और मानव-हित संबंधी प्रभाव
भारत सरकार ने चेतावनी दी है कि इस तरह की फीस से परिवारों को कठिनाइयाँ हो सकती हैं — क्योंकि वीज़धारक जब बाहर हों और फिर वापिस आना चाहें या किसी कारणवश यात्रा करनी पड़े, तो उन पर असर पड़ेगा।
अमेरिका की स्थिति और क्लियरिफिकेशन:
व्हाइट हाउस ने स्पष्ट किया है कि यह फीस वार्षिक नहीं है बल्कि एक-बार की लागत होगी।
वर्तमान वीज़धारकों को इस राशि से राहत है; उनके वीज़ के नवीकरण या वर्तमान स्थिति पर नई फीस लागू नहीं होगी।
इस निर्णय के पीछे अमेरिका की तर्क है कि यह कदम घरेलू श्रम बाजार की रक्षा, अमेरिकी श्रमिकों को प्राथमिकता देने, और विदेशी कर्मियों पर निर्भरता कम करने की नीति के हिस्से के रूप में है।
संभावित प्रतिक्रियाएँ और सुझाव:
भारत सरकार और उद्योग संगठन जैसे नैसकॉम (Nasscom) इस निर्णय की गहराई से समीक्षा कर रहे हैं और अमेरिका के साथ संवाद कर सकते हैं ताकि भारत के पेशेवरों की स्थिति स्पष्ट हो सके।
आईटी और टेक्नोलॉजी फर्मों को अपने व्यावसायिक मॉडलों (business models) पर पुनर्विचार करना हो सकता है — जैसे कि स्थानीय भर्ती (hiring locally in the U.S.), अधिक इन-हाउस विकास, या नौकरियों को भारत या अन्य देशों में शिफ्ट करना।
प्रभावित पेशेवरों को अपनी योजनाएँ (travel, नौकरी, करियर) नई नीति को ध्यान में रख कर तैयार करनी चाहिए।
