December 5, 2025

भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता: सकारात्मक संकेत और आगे की चुनौतियाँ

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भारत और अमेरिका के बीच व्यापार संबंधों में फिर से गति दिखाई दे रही है। दोनों देशों ने हाल ही में नई दिल्ली में हुई वार्ताओं को “सकारात्मक” और “आगे-की ओर देखने वाली” बताया है, जिसमें आपसी समझ को बढ़ाने और लंबित मतभेदों को सुलझाने की कोशिश की जा रही है।

भारत के वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, 16 सितंबर को भारत के विशिष्ट वार्ताकार राजेश अग्रवाल और अमेरिका की ओर से दक्षिण एवं मध्य एशिया के लिए सहायक व्यापार प्रतिनिधि ब्रेंडन लिंच की अगुवाई में हुई वार्ता छह घंटे से अधिक चली। इस दौरान दोनों पक्षों ने यह मान लिया कि वार्ता जारी रखने और समझौते की ओर बढ़ने के लिए ठोस कदम उठाए जाएँ।

मुख्य मुद्दे और विवाद:

हालांकि बातचीत में रुख सकारात्मक है, लेकिन कुछ ऐसे ज़रूरी मुद्दे हैं जिन पर दोनों देशों के बीच मतभेद मौजूद हैं:

भारतीय वस्तुओं पर अमेरिकन टैरिफ (शुल्क भार): अमेरिका ने हाल ही में भारत से आयातित कुछ वस्तुओं पर बढ़े हुए टैरिफ लागू किए हैं, जिनकी दर कुछ मामलों में लगभग 50% तक पहुँच गई है।

H-1B वीज़ा शुल्क में वृद्धि: अमेरिका ने H-1B वीज़ा शुल्क को बढ़ा दिया है, जिसके कारण भारतीय सूचना-प्रौद्योगिकी (IT) क्षेत्र सहित कई भारतीय पेशेवरों के लिए स्थिति चुनौतीपूर्ण हो गई है।

तेल एवं रक्षा (“Oil and Defense”) संबंध: अमेरिका चाहता है कि भारत रूस से तेल और रक्षा उपकरण की खरीद को सीमित करे, जो एक संवेदनशील विषय है क्योंकि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा और रणनीतिक साझेदारियों को ध्यान में रखता है।

कृषि और डेयरी क्षेत्रों में बाजार पहुँच: अमेरिकी पक्ष चाहता है कि भारत अपने कृषि- तथा डेयरी सेक्टर को खोलने के लिए तैयार हो, जिससे अमेरिकी उत्पाद अधिक आसानी से भारतीय बाजार में प्रवेश कर सकें।

आगे की राह:

भारत के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल 22 सितंबर, 2025 को अमेरिका की यात्रा करने वाले हैं। इस दौरे का उद्देश्य वार्ता को आगे बढ़ाना और लंबित मसलों पर आगे की बातचीत करना है।

भारतीय अधिकारियों ने उम्मीद जताई है कि सभी विवादों का समाधान संतोषजनक रूप से होगा और दोनों देशों के व्यापारिक हितों को ध्यान में रखते हुए सौदा संभव हो सकेगा।

इस वार्ता का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य यह है कि भारत-यूएस के बीच व्यापार को एक पार-स्परिक और लाभदायक समझौते (bilateral trade agreement) की दिशा में ले जाया जाए, जो कि दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं को सुदृढ़ कर सके।

सम्भावित प्रभाव:

यदि टैरिफ में कटौती होती है, तो भारतीय निर्यातकों को राहत मिल सकती है, विशेषकर वे उद्योग जो अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं।

दूसरी ओर, संवेदनशील भारतीय क्षेत्रों (जैसे डेयरी, कुछ कृषि उत्पाद, रक्षा) में खुलापन भारत की घरेलू नीति और आत्मनिर्भरता (self-reliance) के नजरिये से विचार करना होगा।

H-1B वीज़ा शुल्क वृद्धि विशेषकर भारतीय IT पेशेवरों और सेवाओं के निर्यात पर असर डाल सकती है। यदि यह मुद्दा हल नहीं हुआ, तो इससे भारत की सेवा निर्यात (services exports) पर दबाव बढ़ सकता है।

इन संकेतों से लगता है कि भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता अपने एक महत्वपूर्ण मोड़ पर है, जहाँ छोटी-छोटी बाधाएँ भी सौदे को प्रभावित कर सकती हैं। लेकिन सरकारों की अच्छी-खासी सक्रियता और संतुलित रुख यह दर्शाते हैं कि आगे की राह संभव है।

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