December 5, 2025

सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से अरावली की 90% पहाड़ियों पर मंडराया संकट? जानिए क्या है ‘100 मीटर’ का नियम

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सुप्रीम कोर्ट द्वारा अरावली पहाड़ियों को लेकर दिए गए हालिया आदेश ने पर्यावरणविदों और आम जनता के बीच एक नई बहस छेड़ दी है। 20 नवंबर 2025 को शीर्ष अदालत ने अरावली की ‘पहाड़ी’ की परिभाषा में एक बड़ा बदलाव स्वीकार कर लिया है। इस नए नियम के तहत, अब केवल वही क्षेत्र ‘पहाड़ी’ माना जाएगा जो जमीन से 100 मीटर से ज्यादा ऊंचा होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि इस फैसले से अरावली की छोटी पहाड़ियों का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का नया आदेश?

​सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के उस प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है, जिसमें कहा गया है कि अरावली क्षेत्र में केवल उन्हीं भू-भागों को ‘पहाड़ी’ का दर्जा दिया जाएगा जिनकी ऊंचाई स्थानीय स्तर से 100 मीटर या उससे अधिक है।

​इस फैसले का सीधा मतलब यह है कि 100 मीटर से छोटी पहाड़ियाँ अब कानूनी रूप से ‘अरावली हिल्स’ का हिस्सा नहीं मानी जाएंगी। भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) की रिपोर्ट के अनुसार, अरावली की लगभग 90% पहाड़ियाँ 100 मीटर से कम ऊंचाई की हैं। इसका अर्थ है कि हजारों छोटी पहाड़ियों से अब वन संरक्षण कानून (Forest Protection) का कवच हट सकता है।

भविष्य में क्या होगा असर? (What is affected in future)

​सुप्रीम कोर्ट ने भले ही तत्काल प्रभाव से नई खनन लीज (Mining Lease) जारी करने पर रोक लगा दी है और सरकार को ‘सतत खनन योजना’ (Sustainable Mining Plan) बनाने को कहा है, लेकिन 100 मीटर के नियम से भविष्य में गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं:

  1. पहाड़ियों के कटने का खतरा (Risk of Cutting Down): चूंकि 100 मीटर से छोटी पहाड़ियाँ अब कानूनी रूप से ‘वन क्षेत्र’ या ‘पहाड़ी’ नहीं रहेंगी, इसलिए भविष्य में उन पर खनन (Mining) और रियल एस्टेट निर्माण का रास्ता साफ हो सकता है। इसी डर के कारण कहा जा रहा है कि अरावली को “काटा जा सकता है”।
  2. दिल्ली-NCR में प्रदूषण और धूल भरी आंधियां: अरावली की पहाड़ियाँ थार मरुस्थल से आने वाली धूल को रोकती हैं। छोटी पहाड़ियाँ (जो 100 मीटर से कम हैं) हवा की गति को कम करने में बड़ी भूमिका निभाती हैं। यदि ये पहाड़ियाँ खनन के कारण खत्म हो गईं, तो दिल्ली, गुरुग्राम और पूरे NCR में धूल भरी आंधियां बढ़ेंगी और वायु प्रदूषण (Air Pollution) खतरनाक स्तर पर पहुंच जाएगा।
  3. जल संकट (Water Crisis): अरावली की चट्टानें भूजल (Groundwater) को रिचार्ज करने का काम करती हैं। अगर छोटी पहाड़ियों को खनन के लिए समतल कर दिया गया, तो हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली में पानी का स्तर और नीचे गिर जाएगा, जिससे पीने के पानी की भारी किल्लत हो सकती है।
  4. वन्यजीवों का पलायन: तेंदुए और अन्य जंगली जानवर अरावली के जंगलों में रहते हैं। संरक्षण हटने से उनके प्राकृतिक आवास (Habitat) नष्ट हो सकते हैं, जिससे मानव-वन्यजीव संघर्ष (Human-Wildlife Conflict) की घटनाएं बढ़ेंगी।

निष्कर्ष

​सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाने की एक कोशिश है, लेकिन जानकारों का कहना है कि 100 मीटर की समय सीमा ने अरावली की सुरक्षा दीवार में एक बड़ा छेद कर दिया है। अब यह देखना बाकी है कि सरकार की आगामी ‘खनन योजना’ इन छोटी पहाड़ियों को कैसे बचा पाती है।

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