SSC: ‘एक ही राज्य में दो अलग नियम क्यों?’ प्राथमिक भर्ती फैसले के बाद भड़के SSC के ‘योग्य’ अभ्यर्थी
पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाले को लेकर चल रही कानूनी लड़ाई के बीच एक नया विवाद खड़ा हो गया है। कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा प्राथमिक शिक्षक भर्ती (Primary Recruitment) को लेकर दिए गए हालिया फैसले के बाद, SSC (स्कूल सेवा आयोग) के ‘योग्य’ (Eligible) उम्मीदवारों का गुस्सा फूट पड़ा है। उनका सवाल है कि जब अपराध एक जैसा है, तो न्याय के पैमाने अलग-अलग क्यों हैं?
क्या है पूरा मामला?
हाल ही में कलकत्ता हाईकोर्ट ने 2014 की प्राथमिक शिक्षक भर्ती प्रक्रिया (TET) से जुड़े मामले में अपना फैसला सुनाया। इस फैसले में कोर्ट ने कई शिक्षकों की नौकरियां सुरक्षित रखी हैं और मामले को सुलझाने के लिए एक नरम रुख अपनाया है।
इसके ठीक विपरीत, कुछ समय पहले हाईकोर्ट की एक विशेष बेंच ने SSC 2016 की पूरी पैनल (Panel) को रद्द कर दिया था। इस फैसले के चलते हजारों ऐसे ‘योग्य’ शिक्षकों की नौकरियां भी चली गईं या खतरे में पड़ गईं, जिन्होंने अपनी मेहनत से परीक्षा पास की थी, सिर्फ इसलिए क्योंकि उनके पैनल में कुछ अयोग्य उम्मीदवारों की भर्ती हुई थी।
‘एक यात्रा में अलग फल क्यों?’
SSC के प्रदर्शनकारी उम्मीदवारों ने बंगाली कहावत “एक जात्राय पृथक फल केनो?” (एक ही यात्रा में अलग परिणाम क्यों?) का हवाला देते हुए कोर्ट और सिस्टम पर सवाल उठाए हैं।
SSC के योग्य उम्मीदवारों का तर्क है:
प्राथमिक भर्ती में: कोर्ट ने ‘योग्य’ और ‘अयोग्य’ को अलग करने की कोशिश की और पूरी भर्ती रद्द नहीं की।
SSC भर्ती में: कोर्ट ने ‘धान के साथ घुन भी पिसने’ की तर्ज पर पूरी भर्ती प्रक्रिया को ही रद्द कर दिया, जिससे निर्दोष उम्मीदवारों को सजा भुगतनी पड़ रही है।
उम्मीदवारों की पीड़ा
धर्मतल्ला में गांधी मूर्ति और मातंगिनी हाजरा के पास लंबे समय से प्रदर्शन कर रहे SSC अभ्यर्थियों का कहना है, “प्राथमिक भर्ती के मामले में कोर्ट ने मानवीय दृष्टिकोण अपनाया, लेकिन हमारे मामले में कठोर कदम उठाते हुए पूरी 2016 पैनल को ही अवैध घोषित कर दिया गया। यह हमारे साथ अन्याय है। हम संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) के तहत समान न्याय की मांग करते हैं।”
गौरतलब है कि SSC 2016 भर्ती का मामला अभी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है। प्राथमिक भर्ती के इस नए फैसले ने SSC अभ्यर्थियों को अपनी आवाज और तेज करने का एक नया कारण दे दिया है। वे अब सवाल पूछ रहे हैं कि क्या पश्चिम बंगाल में अलग-अलग भर्तियों के लिए कानून की व्याख्या अलग-अलग होगी?