December 5, 2025

बीरभूम के प्रवासी मजदूरों को बांग्लादेश में भेजे जाने का मामला: गृह मंत्रालय से हाईकोर्ट ने तलब की रिपोर्ट

0
IMG_20250711_201413

पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के छह प्रवासी मजदूरों को अवैध रूप से भारत से बांग्लादेश में भेजे जाने के गंभीर आरोप सामने आए हैं। आरोप है कि दिल्ली पुलिस द्वारा उन्हें सिर्फ बंगाली भाषा बोलने के आधार पर ‘बांग्लादेशी नागरिक’ मान लिया गया और फिर बीएसएफ की मदद से बांग्लादेश सीमा पार करवा दी गई। इस घटना को लेकर कलकत्ता हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय से विस्तृत रिपोर्ट तलब की है और इसे मानवीय अधिकारों का घोर उल्लंघन माना है।

📌 घटना का संक्षिप्त विवरण:

यह मामला तब सामने आया जब बीरभूम के रहने वाले दो परिवारों ने हाईकोर्ट में हैबियस कॉर्पस याचिका दायर की, जिसमें बताया गया कि उनके घर के छह सदस्य — जिनमें दो नाबालिग भी हैं — जून महीने में काम के सिलसिले में दिल्ली गए थे। लेकिन 12 जून को उन्हें दिल्ली पुलिस ने हिरासत में लिया। बंगाली भाषा बोलने की वजह से उन्हें बांग्लादेशी समझा गया और बिना किसी वैध दस्तावेज या कानूनी प्रक्रिया के उन्हें बांग्लादेश भेज दिया गया।

पीड़ितों के परिजनों का आरोप है कि इस पूरी प्रक्रिया में ना तो कोई कांसुलर सहायता ली गई, ना कोर्ट की अनुमति ली गई और ना ही नागरिकता की जांच की गई। उन्हें सीधे बीएसएफ को सौंपकर सीमा पार करवा दी गई।

⚖️ अदालत की सख्ती:

इस गंभीर मामले पर सुनवाई करते हुए कलकत्ता हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय को नोटिस जारी किया है और सोमवार, 14 जुलाई तक विस्तृत रिपोर्ट मांगी है। इसके साथ ही अदालत ने पश्चिम बंगाल, दिल्ली और ओडिशा के मुख्य सचिवों को भी आपसी समन्वय रखने का निर्देश दिया है।

न्यायाधीशों ने टिप्पणी करते हुए कहा कि “अगर भारतीय नागरिकों को बिना प्रक्रिया के पड़ोसी देश भेजा जाता है, तो यह ना केवल कानून का उल्लंघन है, बल्कि संविधान के मौलिक अधिकारों का भी हनन है।”

🧾 संबंधित घटनाएं और बढ़ती चिंताएं:

यह घटना कोई पहली बार नहीं हुई है। बीते कुछ महीनों में कई ऐसी घटनाएं हुई हैं जहाँ बंगाली भाषा बोलने वाले मजदूरों को संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया गया या देश से बाहर कर दिया गया।

ओडिशा के झारसुगुड़ा में 200 से अधिक बंगाली प्रवासी मजदूरों को हिरासत में लिया गया, जिनके पास सभी आवश्यक दस्तावेज थे, फिर भी उन्हें अवैध नागरिक मान लिया गया।

महाराष्ट्र में एक बंगाली दंपती को भी पुलिस ने बांग्लादेशी बताकर सीमा पार भेज दिया था। बाद में दोनों को भारत लाया गया, लेकिन उन्हें काफी कानूनी प्रक्रिया से गुजरना पड़ा।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह एक “भाषाई प्रोफाइलिंग” का मामला है, जहाँ सिर्फ भाषा के आधार पर नागरिकता पर सवाल उठाया जा रहा है, जो कि भारतीय संविधान की आत्मा के खिलाफ है।

🗣️ राजनीतिक प्रतिक्रिया:

इस घटना को लेकर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस ने केंद्र पर सीधा हमला बोला है। उनका कहना है कि बंगालियों के साथ बार-बार इस प्रकार की घटनाएं देशभर में हो रही हैं, और यह एक प्रकार का संवैधानिक उत्पीड़न है।

वहीं केंद्र सरकार की ओर से अब तक इस मुद्दे पर कोई आधिकारिक बयान सामने नहीं आया है, लेकिन गृह मंत्रालय को अदालत में रिपोर्ट पेश करनी होगी, जिसके बाद स्थिति स्पष्ट हो सकती है।

📊 क्या कहता है मामला?

विषय विवरण:

स्थान बीरभूम, पश्चिम बंगाल → दिल्ली → बांग्लादेश

पीड़ित 6 प्रवासी मजदूर (2 नाबालिग सहित)

आरोप बिना जांच व प्रक्रिया के बांग्लादेश भेजा गया

कोर्ट की कार्रवाई गृह मंत्रालय से रिपोर्ट तलब, सचिवों को निर्देश

मुख्य चिंता भाषा के आधार पर नागरिकता पर संदेह

🔍 निष्कर्ष और आगे की राह:

इस घटना ने एक बार फिर भारत में प्रवासी मजदूरों की स्थिति, विशेषकर बंगाली भाषियों की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह खड़ा कर दिया है। जहां एक ओर केंद्र सरकार अवैध अप्रवासियों पर सख्ती बरत रही है, वहीं दूसरी ओर यदि भारत के ही नागरिकों को बिना प्रक्रिया के देश से बाहर भेजा जा रहा है, तो यह न केवल कानूनी प्रक्रिया की हत्या है, बल्कि भारत की संवैधानिक गरिमा पर भी आघात है।

अब सबकी नजरें सोमवार की अदालत की सुनवाई और गृह मंत्रालय की रिपोर्ट पर टिकी हैं। पीड़ितों के परिवार न्याय की आस में हैं और उम्मीद है कि देश की न्यायपालिका इस मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए उचित कार्रवाई सुनिश्चित करेगी।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *