ज़िंदगी के लिए….

640
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
ज़िंदगी के लिए….
जो है
अनुभूति की परिधि से परे
ले ले कब अपने घेरे में
और लील जाए मुकम्मल ज़िन्दगी
क्या पता ?
क्या पता .

फखत इसीलिए
आज की ये सामाजिक -दूरी
हुई है अहम
हुई है जरूरी .

मगर ज़रा सोचें

रोज कुआं खोदकर             
पानी पीने वाले

मेहनत – खून -पसीने के
निवाले पर जीने वाले

जिसने सघन आबादी बीच
हमेशा
लगातार की हो गुज़र

घूमा हो
बेवजह ,बेलौस ,बेपरवाह , बेरोक
पैदल और साइकल पर

घनघोर कोलाहल अहम हिस्सा हो             
जिसकी ज़िन्दगी का

अजनबी से भी आत्मीयता से
पूरी तवज्जो देकर
बतियाना
हो आम बात जहां .

चाय अड्डा
और
पनवाड़ी की गुमटी
गरमा-गर्म सियासी बहस का हो
अहम ठिकाना .

समाजी-सियासी सरोकार  का
जरूरी पड़ाव ,

थम जाती हो जहां
 सुई घड़ी की

मतभेद पर भी होता ना हो
जहां मनभेद जहां ,

वहीं अब
बदले हुए हालात में
भीग गया हो जब
दहशत में सब

हर खास ओ आम
तकरीबन हर बशर

हर कोई
दुबक गया हो खामोशी में

भर गई हो शक से
हर किसी की नज़र

नतीजतन
भूल चुका हो
लेना
एक दूजे की खबर

करें भी तो क्या करें
कोई और चारा भी तो नही

रह गई हो
फखत
सामाजिक – दूरी ही जब
कारगर

तब
तब तो सीखना ही होगा
यह जरूरी हुनर

ज़िन्दगी के लिए …

जे. आर. गंभीर
बेलघरिया , कोलकाता – 56

Advertisement
Advertisement
Advertisement

For Sending News, Photos & Any Queries Contact Us by Mobile or Whatsapp - 9434243363 //  Email us - raghusahu0gmail.com