लॉक डाउन और कोरोना की त्रासदी ने आदमी की जिंदगी को अनचाही कैद में तब्दील कर दिया है. पेश है इसी विडंबना पर खांटी खड़गपुरिया की चंद लाइनें ….
घर में रहता हूं ….!!
तारकेश कुमार ओझा
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लॉक डाउन है , इसलिए आजकल घर पे ही रहता हूं .
बाल – बच्चों को निहारता हूं , लेकिन आंखें मिलाने से कतराता हूं .
डरता हूं , थर्राता हूं .
लॉक डाउन है , इसलिए आजकल घर पे ही रहता हूं .
बिना किए अपराध बोध से भरे हैं सब
इस अंधियारी रात की सुबह होगी कब .
मन की किताब पर नफे – नुकसान का हिसाब लगाता हूं .
लॉक डाउन है , इसलिए आजकल घर पे ही रहता हूं .
सामने आई थाली के निवाले किसी तरह हलक से नीचे उतारता हूं .
डरता हूं , घबराता हूं , पर सुनहरे ख्वाब से दिल को भरमाता हूं .
लॉक डाउन है , इसलिए आजकल घर पे ही रहता हूं .
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