बरगद की छांव ….!!

621
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement

पिछले दो दशकों में देश – दुनिया और समाज इतनी तेजी से बदला कि पुरानी पीढ़ी के लिए सामंजस्य बैठाना मुश्किल हो रहा है ।इसी विडंबना पर पेश है  खांटी  खड़गपुरिया तारकेश कुमार ओझा  की चंद लाइनें ….

Advertisement
Advertisement
Advertisement

बरगद की छांव    ….!!
तारकेश कुमार ओझा
—————————-
बुलाती है गलियों की  यादें मगर ,
 अब अपनेपन से कोई नहीं बुलाता ।
इमारतें तो बुलंद हैं अब भी लेकिन ,
छत पर सोने को कोई बिस्तर नहीं लगाता ।
बेरौनक नहीं है चौक – चौराहे
पर अब कहां लगता है दोस्तों का  जमावड़ा  ।
मिलते – मिलाते तो कई हैं मगर
हाथ के साथ दिल भी मिले , इतना  कोई नहीं भाता ।
पीपल – बरगद की  छांव  पूर्व सी शीतल
मगर अब इनके नीचे कोई नहीं सुस्ताता  ।
घनी हो रही शहर की  आबादी
लेकिन महज कुशल क्षेम जानने को
अब कोई नहीं पुकारता
 …..………………..

——————————————————–

Loading

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement

For Sending News, Photos & Any Queries Contact Us by Mobile or Whatsapp - 9434243363 //  Email us - raghusahu0gmail.com