“वक़्त”

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“वक़्त”

चलना नही आता मुझको,
तो बार बार गिरा ले तू ।
वक्त आज तेरी बारी है,
जी भर के आजमा ले तू।

झूठ नहीं की तेरे आगे,
जोर नहीं चल पाता है।
बड़े -बड़े सूरमाओं को तू,
आगे अपने झुकाता है।

बनके काले बादल जब,
तू मंडराया करता है।
महल में रहने वाले को,
वन वन में भटकाया करता है।

दिन दिखलाया सबको जो ,
आज मुझे दिखला दे तू।
माना तू बलवान बहुत है,
पर एक जिद मेरी भी है।

इन्हीं राह पे दौडूंगा मैं,
भले ही थोड़ी देरी है।
लाख दिखा दे आंखें किंतु,
डर के मैं न हारुंगा।

मैं तकदीर का मालिक हूं,
लड के भी इसे सवारुंगा।
रफ़्तार इन्हीं कदमों में होगी,
देख अभी तू मुस्कुरा दे तू।

दो कदम मुझे चलाने में,
कई बार मुझे गिराया है तूने।
किंतु गिरा गिराकर के कितने,
सबक सिखाया है तूने।

ना बढ़ने से घबराते हैं एक कदम,
कदम बढ़ाने के अब कई तरीके आते है।
कदम न पीछे हटने वाले,ताकत और बढ़ा ले तू।
हालातों को समझाया है, मार मार के ठोकर मुझको,
और मजबूत बनाया है।

एक तरफ तो रुठा हूं तुझसे,
एक तरफ तेरा कायल हूं।
उसी चोट से संभला हूं,
जिस चोट से तेरे घायल हूं।

सबक कई है तेरे चोट में तेरे,
कोड़े और बरसाले तू।
वक़्त आज तेरी बारी है,
जी भर के आजमा ले तू।।

*मनोज कुमार साह, खड़गपुर*

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