व✍ जे. आर गंभीर
सघन एतराज की लीक कहां, कैसे, क्यूं गुम हो गई क्रांतिकारी चेतना से लैस बंगाल में छोटी-छोटी बातों पर मुखर प्रतिवाद की आंधियां कहां गई दमन के खिलाफ विद्रोह की भावनाएं
जारी है चारो तरफ खुली मनमानियां भ्रष्टाचार
आंदोलन की उपेक्षा-तिरस्कार दमन जारी है
और मूक हो चुकी है समाज की धड़कनें यानी साहित्य-संस्कृतिकर्मी भूल चुके हैं शायद प्रतिक्रियाएं देना गो लकवाग्रस्त हो गई हो चेतना
बाकायदा चुने गए शिक्षक प्रत्याशी 586 दिनों से कोलकाता के सड़क पर अनशनरत हैं महज बहाली के लिए
और संवेदनहीन सरकार
कर रही है सत्ता का इस्तेमाल
बलपूर्वक , यातना देकर
आंदोलनकारियों को खदेड़ने के लिए
भंग करने के लिए आंदोलन
कल की बात है
साबित हो चुकी है यूं
बंगाल के सभ्य और भद्र होने का ढोंग
शालीनता , संवेदनशीला के छद्म की
खुल चुकी है पोल
विकृति साफ दिखने लगी है .
मनीषियों की धरती
निरंतर लिख रही गाथाएँ अधोपतन की .
लेकिन
थेथरलॉजी कायम है .
( 19अक्टूबर की आधी रात के अंधेरे में )
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