पश्चिम बंगाल में राजनीतिक भ्रष्टाचार: हाल के वर्षों की प्रमुख घोटालों का क्रूर और तथ्यात्मक विश्लेषण






पश्चिम बंगाल में राजनीति और पैसा—इन दोनों के घनिष्ठ मेलजोल ने पिछले दशक में कई बड़े घोटालों को जन्म दिया। ये घोटाले न केवल करोड़ों लोगों की जमा-पूंजी सूखने का कारण बने, बल्कि राज्य की प्रशासनिक विश्वसनीयता और लोकतांत्रिक संस्थाओं पर प्रश्नचिह्न भी छोड़ गए। नीचे इन घटनाओं का संक्षिप्त परंतु तथ्यपूर्ण विवरण दिया जा रहा है—तथ्य ऑनलाइन कार्रवाई-रिपोर्ट, सरकारी और जांच-एजेंसियों की कार्रवाइयों पर आधारित हैं।




1. सारदा (Saradha) — पोंजी/कलेक्टिव निवेश का विनाश

सारदा समूह का नेटवर्क 2013-14 में फटा—यह एक बड़े पैमाने का पोंजी/कलेक्टिव-इन्वेस्टमेंट घोटाला था जिसमें लाखों निवेशक फंसे। सीबीआई-एंड-अन्य एजेंसियों ने मामले में आरोपपत्र दाखिल किए; संपत्तियां जब्त की गईं और कई शीर्ष अधिकारियों व कारोबारियों के नाम सामने आए। इस घोटाले ने स्थानीय मीडिया, राजनीति और पूंजी के अस्थायी गठजोड़ की कड़वी सच्चाई उजागर की।
2. रोज़वैली (Rose Valley) — हजारों करोड़ों की धोखाधड़ी और धनशोधन
रोज़वैली समूह पर आरोप है कि उसने कई राज्यों में अवैध निवेश/डिपॉजिट योजनाओं के जरिए निवेशकों से हजारों करोड़ रुपये इकट्ठा किए। ईडी और अन्य संस्थाओं ने बड़ी संपत्तियाँ जब्त कीं और PMLA के तहत चार्जशीट दायर की गईं; पीड़ितों को वापस दिलाने के लिए अदालतीन प्रक्रियाओं के माध्यम से कुछ राशि लौटाने की भी व्यवस्था हुई। मीडिया और सरकारी रिपोर्टों में इस घोटाले का कुल पैमाना बहुत बड़ा आँका गया है।
3. नारदा स्टिंग (Narada sting) — स्तरीय राजनीति में कथित रिश्वत
नारदा स्टिंग ऑपरेशन में 2014-16 के आसपास दर्ज कथित वीडियो/ऑडियो टेप प्रकाशित हुए, जिनमें कुछ राजनीतिक नेताओं के कथित रिश्वत-लैने-देने की बातें सामने आईं। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया और केंद्रीय जांच एजेन्सियाँ (CBI/ED) और संसदीय उप-समितियाँ जांच के दायरे में आईं। यह मामला राजनीति-संचालित भ्रष्टाचार की नैतिकता और सबूत-स्वीकृति के मुद्दे पर एक नैतिक-कानूनी संघर्ष बन गया।
4. सरकारी भर्ती-काण्ड: “जॉब-फॉर-कैश” और प्राथमिक शिक्षक भर्ती के आरोप
राज्य में सरकारी भर्ती प्रक्रियाओं में अनियमितताओं के कई आरोप उठे—विशेषकर प्राथमिक शिक्षक और SSC/SSC-सम्बंधित जॉब मामले। हाल ही में (अगस्त 2025 तक की रिपोर्टिंग के अनुसार) ED ने प्राथमिक शिक्षक भर्ती घोटाले में कुछ मंत्रियों/नेताओं के ख़िलाफ़ चार्जशीट दाखिल कर अनुश्रवण किया है और उक्त मामलों में फिक्टिव बैंक ट्रांज़ैक्शन और धन शोधन के संकेत मिले हैं। इस तरह के घोटाले सीधे युवाओं की आशाएँ कुचलते हैं और सरकारी प्रणाली में विश्वास को क्षति पहुँचाते हैं।
5. जीएसटी/फर्जी आईटीसी और पैसा-धोने की आधुनिक तकनीकें
मनी-लॉन्डरिंग और GST-सम्बंधी बड़े गिरोहों के खिलाफ भी हाल के वर्षों में कई रेड और जांच हुई हैं, जिनमें शेल-कंपनियों के जरिए फर्जी इनपुट-टैक्स क्रेडिट (ITC) का दावा और धन-सफाई के मामले शामिल रहे। ये मामले बतलाते हैं कि कैसे आधुनिक वित्तीय प्रणालियाँ और जटिल नेटवर्क अपराध को सुविधा देते हैं।
क्यों बार-बार घोटाले होते हैं? — कारणों का संक्षेप
1. सियासी-आर्थिक गठजोड़: शक्ति और पूंजी के गहरे नेटवर्क भ्रष्टाचार को सहूलियत देते हैं।
2. नियामक और पारदर्शिता की कमी: भर्ती/निवेश जैसी प्रक्रियाओं में खुले ऑडिट और डिजिटल-ट्रांसपेरेंसी का अभाव।
3. साक्ष्य और जांच में राजनीतिककरण: स्टिंग/मीडिया-रिपोर्टिंग और कानूनी प्रक्रियाओं के बीच खींचतान कई मामलों को लंबित रख देती है।
प्रभाव और समाधान (व्यावहारिक सुझाव):
ऑनलाइन व पारदर्शी भर्ती प्रणाली: बायो-मेट्रिक, डिजिटल-वेरिफिकेशन और खुला स्कोरिंग लागू करें।
त्वरित पुनर्वितरण तंत्र: चिट-फंड/पोंजी के पीड़ितों के लिए केन्द्र-राज्य समन्वित राहत और त्वरित प्रत्यावर्तन तंत्र।
कठोर वित्तीय-निगरानी: बड़े-पैमाने के धन आवागमन पर रियल-टाइम ऑडिट और शेल-कंपनी की पहचान हेतु विशेष नोड।
स्वतंत्र मीडिया तथा शिकायत-पोर्टल की सुरक्षा: पत्रकारों की सुरक्षा व शिकायतों के त्वरित अन्वेषण से पारदर्शिता बढ़ेगी।
निष्कर्ष:
पश्चिम बंगाल के हालिया राजनीतिक-वित्तीय घोटाले केवल व्यक्तिगत अपराध नहीं—वे संस्थागत कमजोरी, नियामकीय खामी और नागरिक जागरूकता के अभाव का प्रमाण हैं। सारदा, रोज़वैली, नारदा और भर्ती-काण्ड जैसी घटनाएँ सरकार, न्यायप्रणाली और मीडिया—तीनों पर एक साथ सवाल उठाती हैं। यदि पारदर्शिता, तेजी से जांच और पीड़ितों की रक्षा को प्राथमिकता न दी गई तो भविष्य में ऐसे घोटाले दोहराने का जोखिम बना रहेगा। जनता, मीडिया और स्वतंत्र संस्थाओं के समन्वित दमन के बिना बदलाव संभव नहीं।
