December 5, 2025

उत्तरकाशी त्रासदी: “पापा, हम नहीं बच पाएंगे” – बाढ़ से पहले बेटे की आखिरी कॉल

0
Screenshot_2025-08-07-18-49-36-668-edit_ai.x.grok

उत्तरकाशी ज़िले के हर्षिल घाटी में आई अचानक बाढ़ और भूस्खलन ने जनजीवन को हिला कर रख दिया। 5 अगस्त की रात हुई इस त्रासदी में कई लोग लापता हैं और अब तक 4-5 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है। दर्जनों लोगों की तलाश अभी भी जारी है।

नेपाल से आए मज़दूर विजय सिंह और उनकी पत्नी काली देवी उन लोगों में थे जो इस आपदा से पहले घाटी से निकल गए थे। लेकिन उनका बेटा और अन्य साथी मजदूर वहीं फंसे रह गए। बेटे ने जब फोन किया, तो उसकी आवाज़ में डर साफ झलक रहा था।

> “पापा, हम नहीं बच पाएंगे… नाले में बहुत पानी आ गया है।”

– यह आखिरी शब्द थे जो बेटे ने कहे, फिर कॉल कट गया।

विजय सिंह और उनकी पत्नी उसी वक्त रास्ते में थे, लेकिन रास्ता टूट चुका था। ब्रिज बह गया था और भूस्खलन ने आगे जाने का कोई रास्ता नहीं छोड़ा। मजबूर होकर उन्हें लौटना पड़ा।

❖ बाढ़ में लापता और मृतक की स्थिति:

इस प्राकृतिक आपदा में कुल 26 नेपाली मजदूरों का एक दल काम पर था, जिनमें से 24 अब भी लापता हैं। इसके अलावा वहां मौजूद सेना के एक दल के 11 जवान भी लापता हैं। सेना, एनडीआरएफ और एसडीआरएफ द्वारा बचाव अभियान जारी है, लेकिन खराब मौसम और टूटी सड़कों के कारण राहत कार्य बाधित हो रहा है।

❖ आपदा का मुख्य कारण:

स्थानीय प्रशासन और विशेषज्ञों के मुताबिक, यह आपदा ग्लेशियर टूटने या अचानक बादल फटने से आई हो सकती है। हर्षिल और धाराली क्षेत्र में भारी वर्षा के चलते नाले उफान पर आ गए और बाढ़ ने कई घर, पुल और सड़कें बहा दीं।

❖ उद्धार कार्य और स्थिति:

सेना के हेलीकॉप्टर, ड्रोन्स, और बचावकर्मी लगातार राहत और खोज अभियान चला रहे हैं। अब तक लगभग 70 लोगों को सुरक्षित निकाला गया है, लेकिन 50 से अधिक लोग अभी भी लापता हैं।

🔎 सारांश तालिका:

विषय विवरण-

आपदा का समय 5 अगस्त 2025 रात

स्थान हर्षिल घाटी, धाराली – उत्तरकाशी, उत्तराखंड

मृतक कम से कम 4–5

लापता 50+ (24 मजदूर, 11 सैनिक सहित)

प्रमुख कारण तेज बारिश, फ्लैश फ्लड, संभावित ग्लेशियर फटना

विशेष घटना बेटे की आखिरी कॉल: “पापा, हम नहीं बच पाएंगे”

राहत कार्य सेना, NDRF, SDRF, हेलिकॉप्टर, ड्रोन आदि से जारी|

यह घटना न सिर्फ उत्तराखंड की भौगोलिक संवेदनशीलता को दर्शाती है, बल्कि पर्वतीय क्षेत्रों में हो रहे अनियंत्रित निर्माण, जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन की तैयारियों की सच्चाई को भी उजागर करती है।

एक माँ-बाप के लिए सबसे बड़ा दुख है अपने बेटे की लाचारी भरी आखिरी आवाज़ सुनना — यह कहानी उस त्रासदी की एक मूक चीख है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *