पश्चिम बंगाल की आर्थिक प्रगति बनाम जमीनी हकीकत: विकास के बीच असंतोष की परछाई






राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में घोषणा की कि जुलाई 2025 में पश्चिम बंगाल ने 12% की जीएसटी राजस्व वृद्धि के साथ ₹5,895 करोड़ का संग्रह किया है, जो पिछले वर्ष की इसी अवधि में ₹5,257 करोड़ था। इस आँकड़े को राज्य की आर्थिक मजबूती का संकेत बताया गया।




लेकिन ज़मीनी सच्चाई इससे काफी अलग है। राज्य में युवा, शिक्षक, नौकरी के उम्मीदवार और छोटे व्यवसायी प्रशासनिक लापरवाही, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से जूझ रहे हैं। आर्थिक विकास के दावों के पीछे छिपी है एक गहरी सामाजिक और प्रशासनिक असंतोष की कहानी।

📌 हाई स्कूल पैनल रद्द और शिक्षकों की बेरोजगारी:
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने 2016 के स्कूल सर्विस कमीशन (SSC) द्वारा नियुक्त 25,753 शिक्षकों और कर्मचारियों की भर्ती को रद्द कर दिया, क्योंकि प्रक्रिया में भारी भ्रष्टाचार पाया गया। नतीजतन, हजारों ‘untainted’ यानी निर्दोष उम्मीदवार भी नौकरी से बाहर हो गए।
राज्यभर में शिक्षक सड़क पर उतर आए हैं – नबान्न अभियान, जिसमें पुलिस से झड़प हुई, शिक्षक प्रवीर कर्मकार की मानसिक तनाव से मृत्यु हुई, और कई स्कूलों में “क्लस्टर स्कूल” मॉडल के जरिए विषय शिक्षक के बिना पढ़ाई चल रही है।
📌 सरकारी नौकरी का संकट:
राज्य सरकार की ओर से पिछले कई वर्षों से कोई बड़ी सरकारी भर्ती नहीं निकाली गई है। PSC, SSC और स्वास्थ्य विभाग जैसे क्षेत्रों में उम्मीदवार सालों से इंतज़ार कर रहे हैं। परीक्षा की घोषणा, नियुक्ति प्रक्रिया में देरी, कोर्ट केस और भ्रष्टाचार की वजह से युवा निराश हैं और कई राज्य छोड़कर अन्य जगह जा रहे हैं।
📌 मीडिया और करियर के अवसरों की कमी:
राज्य में आर्थिक वृद्धि के बावजूद, नए मीडिया हाउस या समाचार संस्थानों की स्थापना नहीं हो रही है। युवा पत्रकारों और मीडिया छात्रों को नौकरी के अवसर नहीं मिल रहे। स्थानीय मीडिया पर राजनीतिक प्रभाव का आरोप भी लगातार उठ रहा है।
📌 छोटे व्यवसाय और स्टार्टअप की चुनौतियाँ:
GST वृद्धि के बावजूद, छोटे व्यापारियों और स्टार्टअप संस्थापकों का कहना है कि सरकार की ओर से बैंक लोन, सपोर्ट सिस्टम और बिज़नेस परमिट की प्रक्रियाएं बेहद जटिल हैं। अनुदान और नीति-निर्माण की दिशा में सरकार की निष्क्रियता उनके लिए बड़ी बाधा बन रही है।
✅ निष्कर्ष: जब तक हर नागरिक को लाभ न मिले, विकास अधूरा है
राज्य का जीएसटी संग्रहण भले ही बढ़ा हो, लेकिन जब तक हर युवा, शिक्षक और व्यापारी को इसका वास्तविक लाभ नहीं मिलता, तब तक यह केवल कागज पर दर्ज एक आंकड़ा ही रहेगा। शिक्षक आंदोलन, नौकरी का अभाव, मीडिया का सन्नाटा और उद्यमियों की तकलीफ—ये सब दर्शाते हैं कि आर्थिक वृद्धि का लाभ ज़मीनी स्तर पर नहीं पहुंच रहा।
सच्चा विकास तब ही होगा, जब वह सभी नागरिकों के जीवन में सुधार लाए—न कि केवल सरकारी रिपोर्टों में।
रिपोर्ट: [सुभदीप महांती ]
