December 5, 2025

भारत-जर्मनी पनडुब्बी समझौता: नौसेना की क्षमता को बड़ा धक्का

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देश की रक्षा क्षमता को मजबूत करने का एक बड़ा कदम उठाते हुए केंद्र सरकार ने ₹70,000 करोड़ के महत्वाकांक्षी Project 75-India (P-75I) के तहत छह अत्याधुनिक पनडुब्बियों के निर्माण के लिए जर्मनी के साथ आधिकारिक बातचीत शुरू करने की मंजूरी दे दी है .

मुख्य बिंदु:

बातचीत की शुरुआत: रक्षा मंत्रालय और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी Mazagon Dock Shipbuilders Limited (MDL) को थिसेनक्रुप्प मैरीन सिस्टम्स (TKMS) के सहयोग से समझौता वार्ता शुरू करने का हरी झंडी मिली है . ये बातचीत अगस्त अंत तक शुरू करने का लक्ष्य रखा गया है, और अगले 6–8 महीनों में इसका निष्कर्ष निकलने की उम्मीद है .

तकनीकी विशेषताएँ: इन पनडुब्बियों में एयर-इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) तकनीक शामिल होगी, जिससे वे लगभग तीन सप्ताह तक पानी के अंदर रह सकेंगी—यह मौजूदा बेड़े की क्षमता से कहीं बेहतर है .

स्वदेशी निर्माण क्षमता: इस परियोजना का उद्देश्य केवल पनडुब्बियों की खरीद नहीं बल्कि भारत में डिज़ाइन और निर्माण क्षमता विकसित करना भी है, जिससे रक्षा उपकरणों पर विदेशी निर्भरता कम हो सके .

नैतिक ज़रूरत: चीन की तेज़ी से बढ़ती नौसेना और पाकिस्तान की र आत्म-सशस्त्र क्षमता बढ़ा रही है। भारतीय नौसेना के लगभग 10 पुरानी पनडुब्बियाँ अगले दस वर्षों में सेवा से बाहर हो जाएँगी, अत: उनकी timely जगह भरना अत्यावश्यक हो गया है .

अन्य पहल: P-75I के साथ-साथ भारत दो नाभिकीय हमला पनडुब्बियों (SSNs) के विकास में भी व्यस्त है, जिसमें निजी क्षेत्र विशेषकर Larsen & Toubro (L&T) महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है .

इतिहास और चयन प्रक्रिया:

जनवरी 2025 में, L&T–Navantia गठबंधन की पेशकश को AIP तकनीक का समुद्र-समर्थ प्रमाण प्राप्त न करने के कारण खारिज कर दिया गया था, और MDL–TKMS गठबंधन ही एकमात्र योग्य उम्मीदवार रहा .

यदि समय सीमा का पालन होता है, तो पहला P-75I पनडुब्बी 2032–33 के आसपास सेवा में आ सकती है—लगभग सात साल बाद जब अनुबंध पर हस्ताक्षर होंगे .

जर्मन-भारतीय रक्षा संबंध: यह समझौता जर्मनी के साथ भारत की रक्षा संबंधों का नया अध्याय है। 1980 के दशक में भारत ने जर्मनी से Type-209 पनडुब्बियाँ प्राप्त की थीं; अब यह दूसरा बड़ा सहयोग है .

निष्कर्ष:

Project 75-India परियोजना भारत की समुद्री सुरक्षा दृष्टि और आत्मनिर्भरता की दिशा में एक निर्णायक कदम है। अमेरिकी तकनीक नहीं, बल्कि जर्मन सहयोग से स्वदेशी रूप से निर्मित पनडुब्बियाँ—जो तीन सप्ताह से अधिक गोता लगाने में सक्षम हैं—न केवल नौसेना की शक्ति बढ़ाएँगी, बल्कि रक्षा निर्माण क्षेत्र में आत्म-निर्भरता को भी बढ़ावा देंगी। ये पनडुब्बियाँ मध्य 2030 के दशक तक फ्लोट में आ जाएँ तो यह भारत की सामरिक रणनीति को लंबे समय तक सुदृढ़ बना सकती हैं।

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