माँ, तुम आओगी क्या?

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माँ
तुम आओगी क्या?

माँ इस नवरात्र तुम आओगी क्या,
अपना दूर्गा रूप दिखाओगी क्या?
पर सुना है इस भारत में डर का साया है,
हर ओर मातम सा छाया है।
इससे हमें बचाओगी क्या?
माँ तुम इस नवरात्र आओगी क्या?

जहाँ से तुमको आना है,
कुछ मनचलों का वहाँ ठिकाना है।
डरते नही है वो किसी भी करतूत से,
तेरे लक्ष्मी, काली, सरस्वती रुप से।
इनके अंदर का दानव ने इन्हे बहकाया है,
इनको तो नारी की काया ने रिझाया है।
इनके अंतर दानव को तुम मिटाओगी क्या,
माँ तुम इस नवरात्र आओगी क्या?
हर स्त्री की पहचान तुमसे थी,
माँ, बेटी, पत्नी की पहचान तुमसे थी।
आज ये भ्रम किसने फैलाया है,
नारी के सम्मान को रुलाया है।
कर दो इनका वध, मिटा दो इनकी हस्ती।
धरती को कर दो लाल, दिखाओं अपनी शक्ति।
भारत की भूमी पर सम्मान का तिलक लगाओगी क्या ?
माँ इस नवरात्र तुम आओगी क्या?
संतो की इस धरती को वाटिका सा सजा दो,
जहाँ रहे सीता निर्भय ऐसा रीत चला दो।
हो हर नारी का सम्मान यहाँ पर,
भाई-बहन का प्यार यहाँ पर।
माँ तुम्हे इस नवरात्र आना होगा,
अपना दूर्गा रूप दिखाना होगा।
माँ तुम्हे आना होगा।
माँ तुम्हे आना होगा।।

*मनोज कुमार साह, खड़गपुर*

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