मेरी सब मौन व्यथाएं, मेरी पीड़ा का परिचय–सुभद्रा कुमारी चौहान के जन्म दिवस पर विशेष

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मनीषा झा

खड़गपुर, आजादी का बिगुल बजाने वाली कालजयी कवियत्री सुभद्रा कुमारी चौहान का जन्म 16 अगस्त को इलाहाबाद में हुआ था। बाल्यकाल से ही वे कविता गढ़ने लगी थी और उनकी कविता राष्ट्रीयता से परिपूर्ण होती थी। उनकी प्रसिद्ध कविता “झांसी की रानी की समाधि” आज भी हमारे रोम-रोम को रोमांचित कर देती हैः-
सिंहासन हिल उठे, राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आजादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन् सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलो के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
उनकी ओजपूर्ण कविताओं ने देशवासियों में राष्ट्रप्रेम को जगाकर स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।
महलों ने दी आग, झोपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,
बुंदेले हरबोलो के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झांसी वाली रानी थी।।
जालियांवाला बाग में जनरल डायर द्वारा किये गये क्रूर नरसंहार से कवियत्री बहुत ही मर्माहत हुई थी।यह दर्द उनकी कविता “जालियांबाला बाग में बसन्त” में बखूबी झलकता हैः-
यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते,
काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते।
ओ प्रिय ऋतुराज ! किन्तु धीरे से आना,
यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना।
कवियत्री ने बाल मन का भी सजीव चित्रण किया है। खिलौने बाले कविता में इस बाल सुलभ मन का सजीव चित्रण स्पष्ट दिखाई देता हैः-
वह देखो माँ आज खिलौनेवाला फिर से आया है।
कई तरह के सुंदर-सुंदर नए खिलौने लाया है।
मैं तो तलवार खरीदूँगा माँ या मैं लूँगा तीर कमान
जंगल में जा, किसी ताड़का को मारूँगा राम समान।
सुभद्रा कुमारी चौहान कवियत्री के साथ-साथ एक अच्छी लेखिका थी। उन्हें स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएं सहना पड़ी। उन्होंने इसकी अनुभूति को अपनी कहानी में व्यक्त किया। सरल व काव्यात्मक भाषा में रचना करने के कारण लोगों के दिलों में बस गयी थी। उनकी 117वी जयंती पर गूगल ने भी डूडल के माध्यम से उनको श्रद्धांजलि दी। सच्चे अर्थो में सुभद्रा कुमारी चौहान कालजयी कवियत्री है, उनके रचनाओं को जीवन में आत्मसात करने से हम उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि दे पायेगें।
क्यों कहते हो लिखने को, पढ़ लो आँखों में सहृदय।
मेरी सब मौन व्यथाएं, मेरी पीड़ा का परिचय।।

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