December 5, 2025

दिघा के जगन्नाथ मंदिर में नीम की मूर्ति और पुरी के सेवायतों की उपस्थिति पर विवाद, ओडिशा सरकार ने दिए जांच के आदेश

0
FotoJet-2025-04-22T134636.814-2025-04-8d4f4a5742f14c4bdf9cf74d6dc59a2b-16x9

लेखक: सुभदीप महांति

दिघा, पश्चिम बंगाल | 5 मई 2025:
पश्चिम बंगाल के प्रसिद्ध समुद्री पर्यटन स्थल दिघा में बने नए जगन्नाथ मंदिर में मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। पुरी के जगन्नाथ मंदिर के सेवायतों की इस कार्यक्रम में भागीदारी और मूर्ति निर्माण में उपयोग की गई लकड़ी की उत्पत्ति को लेकर ओडिशा सरकार ने जांच के आदेश दिए हैं।

गत बुधवार, अक्षय तृतीया के शुभ अवसर पर, सुबह 11:10 बजे से 11:30 बजे के बीच दिघा मंदिर में नीम की लकड़ी से बनी भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में प्राण प्रतिष्ठा की प्रक्रिया सम्पन्न हुई। यह अनुष्ठान पुरी के प्रसिद्ध सेवायत राजेश दयितापति के नेतृत्व में सम्पन्न हुआ। वैदिक परंपरा के अनुसार मूर्ति को कुश स्पर्श कराकर देवत्व प्रदान किया गया।

विवाद की जड़ एक समाचार रिपोर्ट है, जिसमें दावा किया गया है कि यह मूर्ति पुरी के जगन्नाथ मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त नीम की लकड़ी के बचे हुए हिस्से से बनाई गई है। इस दावे से यह सवाल खड़ा हो गया है कि क्या इसके लिए विधिवत अनुमति ली गई थी।

ओडिशा के कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन ने इस विषय पर पुरी के मंदिर प्रशासक अरविंद कुमार पाधी को पत्र लिखकर आंतरिक जांच का आदेश दिया है। पत्र में यह स्पष्ट किया गया है कि जांच की जाए कि किन सेवायतों ने दिघा के कार्यक्रम में भाग लिया और मूर्ति निर्माण में उपयोग की गई लकड़ी कहाँ से प्राप्त की गई।

इसके अलावा, ओडिशा सरकार ने इससे पहले भी इस मंदिर को ‘जगन्नाथधाम’ नाम देने पर आपत्ति जताई थी। उनका मानना है कि यह नाम केवल पुरी के लिए ही उचित है, क्योंकि यह धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से अत्यंत पवित्र और ऐतिहासिक महत्व रखता है।

फिलहाल, ओडिशा सरकार पूरे घटनाक्रम पर नजर बनाए हुए है और जांच के परिणाम के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी। इस घटना से दो राज्यों के बीच धार्मिक भावनाओं और प्रशासनिक निर्णयों को लेकर एक नया टकराव उभरता दिख रहा है।

দিঘার জগন্নাথ মন্দিরে নিমকাঠের বিগ্রহ ও পুরীর সেবায়েতদের উপস্থিতি ঘিরে বিতর্ক, তদন্তে উদ্যোগী ওড়িশা সরকার
লিখেছেন: সুভদীপ মাহান্তি

দিঘা, পশ্চিমবঙ্গ | ৫ মে ২০২৫:
দিঘার নবনির্মিত জগন্নাথ মন্দিরের বিগ্রহে প্রাণপ্রতিষ্ঠার অনুষ্ঠানে পুরীর জগন্নাথ মন্দিরের সেবায়েতদের সরাসরি অংশগ্রহণ এবং বিগ্রহ নির্মাণে ব্যবহৃত কাঠের উৎস ঘিরে শুরু হয়েছে তীব্র বিতর্ক। এই ঘটনার পরিপ্রেক্ষিতে ওড়িশার বিজেপি সরকার তদন্তের নির্দেশ দিয়েছে।

গত বুধবার, অক্ষয় তৃতীয়ার শুভ দিনে, সকাল ১১টা ১০ থেকে সাড়ে ১১টার মধ্যে দিঘার মন্দিরে নিমকাঠের বিগ্রহে প্রাণপ্রতিষ্ঠা সম্পন্ন হয়। এই গুরুত্বপূর্ণ ধর্মীয় আচার সম্পাদন করেন পুরীর জগন্নাথ মন্দিরের অন্যতম প্রধান সেবায়েত রাজেশ দয়িতাপতি এবং তাঁর নেতৃত্বাধীন পুরোহিত দল। জানা গেছে, বিগ্রহে কুশস্পর্শ করিয়ে দেবতাকে চৈতন্য প্রদান করা হয়।

বিতর্কের সূত্রপাত হয় ইন্ডিয়ান এক্সপ্রেসে প্রকাশিত এক প্রতিবেদনের মাধ্যমে, যেখানে দাবি করা হয়—দিঘার জগন্নাথ বিগ্রহটি তৈরি হয়েছে পুরীর জগন্নাথ মন্দিরে বিগ্রহ নির্মাণে ব্যবহৃত নিমকাঠের উদ্বৃত্ত অংশ দিয়ে। এই দাবিকে কেন্দ্র করে প্রশ্ন উঠেছে, এ ধরনের কাঠ ব্যবহারের অনুমতি আদৌ কীভাবে মিলল?

এই প্রসঙ্গে ওড়িশার আইনমন্ত্রী পৃথ্বীরাজ হরিচন্দন চিঠি দিয়ে পুরীর মন্দির প্রশাসক অরবিন্দ কুমার পাধীকে অভ্যন্তরীণ তদন্তের নির্দেশ দিয়েছেন। চিঠিতে স্পষ্টভাবে জানতে চাওয়া হয়েছে—পুরীর কোন কোন সেবায়েত দিঘায় উপস্থিত ছিলেন, এবং বিগ্রহ নির্মাণে ব্যবহৃত কাঠের উৎস কী।

উল্লেখ্য, এর আগেও ওড়িশা সরকার দিঘার মন্দিরকে ‘জগন্নাথধাম’ নামকরণ নিয়ে আপত্তি তুলেছিল। তাদের দাবি, এই নাম শুধুমাত্র পুরীর জন্যই সংরক্ষিত, যেটি ধর্মীয়, সাংস্কৃতিক এবং ঐতিহাসিক দিক থেকে বিশেষ মর্যাদাসম্পন্ন।

বর্তমানে ওড়িশা সরকার গোটা ঘটনাপ্রবাহের উপর নজর রেখেছে এবং তদন্তের ফলাফল অনুযায়ী ভবিষ্যৎ পদক্ষেপ নেওয়া হবে বলে জানা গেছে। এই ঘটনাকে কেন্দ্র করে দুই রাজ্যের মধ্যে ধর্মীয় আবেগ ও প্রশাসনিক সিদ্ধান্ত ঘিরে টানাপোড়েন তৈরি হয়েছে।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *