हाथ मिलाया हाथ, हाथियाँ और ड्रैगन ने बदली अमेरिका की धांधली?






31 अगस्त 2025 को सियान (शंघाई सहयोग संगठन, SCO) सम्मेलन से पहले, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने एक महत्वपूर्ण द्विपक्षीय बैठक की। इस दौरान दोनों नेताओं ने राजनीतिक, आर्थिक और क्षेत्रीय सुरक्षा से संबंधित मसलों पर विस्तृत बातचीत की, जिसमें सबसे ज़्यादा जोर यह रहा कि दोनों देश एक-दूसरे को ‘प्रतिपक्ष (opponent)’ नहीं, बल्कि ‘विकास में साझेदार (partner)’ मानते हैं।




बैठक की मुख्य विशेषताएँ:

परस्पर विश्वास का ज़ोर: मोदी ने बैठक में स्पष्ट किया कि भारत चीन के साथ भरोसे के आधार पर अपने संबंधों को आगे बढ़ाना चाहता है। उन्होंने यह भी बताया कि पिछले वर्ष की सीमा तनाव के बाद सीमा पर शांति बहाल है।
लोगों तक का प्रभाव: मोदी ने कहा कि भारत-चीन संबंधों का असर दो अरब आठ करोड़ लोगों— मतलब लगभग 2.8 अरब— की भलाई से जुड़ा है। साथ ही, दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानों की बहाली और कोविड के बाद बंद रहे कैलास मानसरोवर यात्रा मार्ग के खुलने का संकेत भी उन्होंने दिया।
सीमा से परे साझेदारी: शी जिनपिंग ने कहा कि बदलती दुनिया में “अच्छे दोस्त और पड़ोसी” बने रहना दोनों देशों के लिए बेहद ज़रूरी है। उन्होंने भारत-क��न को “सभ्य समाजों” का प्रतीक बताते हुए कहा, “ड्रैगन और एलिफेंट को साथ आना चाहिए,” और यह भी साफ किया कि दोनों देश एक-दूसरे के लिए कोई खतरा नहीं हैं। उनकी यह टिप्पणी उस धारणा को भी खारिज करती है कि भारत-चीन संबंध केवल सीमा विवाद से सीमित हैं।
तीसरे पक्ष की पृष्ठभूमि: बैठक में यह स्पष्ट किया गया कि भारत-चीन रिश्तों की समीक्षा किसी “तीसरे देश की नजर” से नहीं की जानी चाहिए।
अमेरिका का प्रभाव और हालिया घटनाक्रम:
शुल्क नीति पर तनाव: चीन ने अप्रैल 2025 में अमेरिकी वस्तुओं पर अतिरिक्त शुल्क लागू कर दिए, जबकि अमेरिका के तत्काल पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत की वस्तुओं पर 50% तक के टैरिफ लगाये थे और भारत पर रूस से तेल न खरीदने का दबाव बनाया— जिसे भारत (दक्षिण ब्लॉक) ने ठुकराया।
इस पृष्ठभूमि में, एशिया और दुनिया के दो महाशक्तियों— भारत और चीन— का एकता और पड़ोसियों से मित्रवत व्यवहार की भावना निश्चित ही वैश्विक रणनीतिक समीकरणों को हिलाकर रख सकती है।
निष्कर्ष:
शंघाई सहयोग संगठन सम्मेलन से पहले नरेंद्र मोदी और शी जिनपिंग की यह बैठक न सिर्फ द्विपक्षीय रिश्तों में सुधार का संकेत है, बल्कि यह यह भी बताती है कि दूसरी महाशक्ति अमेरिका के लिए यह एक संकेत (signal) हो सकता है— कि भारत और चीन अब नए साझेदारी और विश्वास के आधार पर मिलकर चलने को तैयार हैं।
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