मैं खड़गपुर हूं … खुद्दारी मेरे खून में है !!

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तारकेश कुमार ओझा , खड़गपुर : क्रांतिकारियों की पुण्य भूमि का हिस्सा बन कर गौरवान्वित हूं , मैं खड़गपुर हूं और खुद्दारी मेरे खून में है । धड़धड़ाती रेल , पिघलते लोहे और उड़ते धूल – सीमेंट के बीच मेरी आंख खुलती है । माथे का पसीना मेरा आभूषण है । तभी तो समग्र भारत के विभिन्न हिस्सों से लोग रोजी – रोटी की तलाश में मेरी देहरी पर आए । मैने किसी को निराश नहीं किया । न जाने कितने ” भूतपूर्व ” मेरी मिट्टी में दफन हैं । हर पांच साल में कम से कम तीन चुनाव देखना मेरी नियति है । फाल्गुन की मस्ती के बीच मैं इस बार भी चुनावी नारों को साफ सुन पा रहा हूं । अपना अंतिम फैसला मैं अंत में सुनाऊंगा । पहले दावेदारों को परख तो लूं। इतिहास गवाह है कि मैने बगैर किसी बड़े चाह के लोकतंत्र के पर्व यानि हर चुनाव में निष्ठापूर्वक हिस्सा लिया । मैने अपने लिए भला चाहा भी क्या … जिसे चुन कर भेजूं , वो जरूरत के समय मुझे आवश्यक सर्टिफिकेट दे दे … देश – प्रदेश का ख्याल रखे और हो सके तो सड़क – पानी , बिजली की व्यवस्था दुरुस्त रखे । मुझे दुख होता है जब अपने नौजवानों को रोजगार के अभाव में सड़क , चौक – चौराहों पर टाइम – पास करते देखता हूं । लड़के हैं , पढ़े लिखे हैं , उनके भी सपने हैं …। काम के अभाव में अवसाद ग्रस्त हो रहे हैं , मोबाइल घांट कर समय बिता रहे हैं तो इसमें आखिर उन बेचारों का भी क्या कसूर । क्या कोई ऐसा जन प्रतिनिधि आएगा , जो मेरी इस दुख – पीड़ा को समझ सके । मुझे इस दुष्चिंता से बाहर निकाल सके …। घनघोर नाउम्मीदी में भी मुझे उम्मीद है , क्योंकि मैं खड़गपुर हूं ….।

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